मेरे होने न होने में
है कोई भेद नहीं,
मैं हूं तो सही
नहीं तो कोई और सही।
मेरी कहानी में
इक पात्र हूं फिर भी,
किसी और की कहानी में
मेरा कोई पात्र नहीं।
कभी कभी जब लगता मुझे,
है मेरा भी कोई अस्तित्व यहां,
वो हौले से कह जाता है
एक उसके सिवा नहीं कुछ भी यहां।
सब सत्य है और मिथ्या भी
क्यों चिंतित हो बेबात में,
भूल स्वयं बस ध्यान उसका रखना,
उसके आगे कोई राह नहीं।
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