Saroj Yadav   (@सरोज यादव 'सरु')
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हाँ कि दुनिया का चलन मुझको नही आया
तुम तो सिखलाते जतन तुझको नही आया
Joined 16 January 2018


हाँ कि दुनिया का चलन मुझको नही आया
तुम तो सिखलाते जतन तुझको नही आया
Joined 16 January 2018
26 APR 2022 AT 20:13

तुम्हारा रूठ जाना भी मुझे लगता तुम्हारा प्यार
तुम्हारे बिन बहारों के जमाने , ले कर आये खार

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24 APR 2022 AT 1:27

""अहा !! जिंदगी !!""

उहापोह से भरी है दुनिया सांस सांस मे संशय है
तब भी पास तुम्हारे आकर कहती साथ तुम्हारे हूँ

कितने हैं जो तोड़ गये हैं बन्धन दुनियादारी के
चाहे जो हालात हो जग में रहती साथ तुम्हारे हूँ

माना सब अपने में गुम है नहीं सुने तो गमगीं क्यों
नहीं अकेले जो कहते हो कहती साथ तुम्हारे हूँ

मौसम करवट ले ही लेगा फितरत से क्यों डरते हो
सर्द हवा या गर्म दुपहरी सहती साथ तुम्हारे हूँ

कश्ती से दरिया की यारी लहरों से घबराना क्या
डूबेंगे या साथ तिरेंगे बहती साथ तुम्हारे हूँ
-सरोज यादव

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22 FEB 2022 AT 15:51

तेरी हरकत बताती है बहुत ही डर गया है तू
महज सांसो के चलने से कोई जिंदा नहीं होता.

तू अपनी शख्सियत की हर समय तारीफ सुनता है
महज ताली बजाने से कोई उम्दा नहीं होता.

अगर नफरत बड़ा बलवान है ये मानते हो तुम
तो अबतक लड़ रहा इंसानियत जिंदा नहीं होता.

ये जो कीचड़ लगाते हो किसी की शख्सियत पर तुम
महज मिट्टी लगाने से कोई गन्दा नहीं होता.
@सरोज यादव 'सरु'— % &

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22 JAN 2022 AT 15:08

वह उस युद्ध का सिपाही था जो कभी हुआ ही नहीं
वह उस आंदोलन का आंदोलनकारी था जिसमें सिर्फ वही था
वह एक ही समय मे सबके हिस्से का पुण्य अपने नाम करना चाहता है
वह एक ही समय मे कई युगों में अपना परचम लहराना चाहता है
विध्वंस के बाद अब वह विहंगम दृष्टि डालकर शायद अट्टहास कर रहा है
नहीं,नहीं, विदूषक आपका नहीं ,शायद अब खुद का उपहास कर रहा है
@सरोज यादव

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9 JAN 2022 AT 13:52

सम्मोहन आखिर छंटता है , जैसा भी हो जाल बुना
आज नहीं तो कल आखिर सब , सोते से उठ जाएंगे

वक्त भरेगा घाव ये तय है , पीड़ा की भी सीमा है
लेकिन तबतक जाने कितने जख्मों से टकराएंगे

औरों की सिसकी सुनकर भी नीद जिन्हें आ जाती है
फिर तो तय है कल वो तन्हा , अपना सर टकराएंगे

गिरवी रख दी जिसने गैरत चांदी के दो सिक्कों पर
उजले दामन वालों से फिर , वो कैसे आँख मिलाएंगे
@सरोज यादव 'सरु'

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1 JAN 2022 AT 8:42

सभी चेहरे चहक जाएं जमाने भर में खुशियां हो
दुआ से रौशनी आये जहां भर में उजाला हो

जहां सब मिलके रहते हों वहां हो नूर की बारिश
किसी को दे नहीं पाए ,जो नफरत हो दिवाला हो

धरा भर के किसानों का , दमन कोई न कर पाए
किसानों को मिले खुशियां सभी मुंह को निवाला हो

यहां सब प्रेम के आदी ,अहिंसा सत्य की धरती
यहां रह ही नहीं पाता , जो दिल में मैल वाला हो
@सरोज यादव

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31 DEC 2021 AT 21:07

जो हमको सोचना मुश्किल वो दुनिया कर गुजरती है
किसी भी बात पर दुनिया की , अब हैरानी नहीं होती

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31 DEC 2021 AT 11:04

मुझे मालूम है कहने से मेरे कुछ न बदलेगा
मगर मैं खुद की नजरों की हिकारत सह नहीं सकती

मिली है कैद जो बोलें , भले गूंगो की पूजा हो
करो तुम तय सजा , बोले बिना मैं रह नहीं सकती

हवा के रुख से सच और झूठ तुमको ही मुबारक हो
मरूं मैं लड़ के लहरों से ,मैं मुर्दा बह नहीं सकती

यहां झूमी बहारें और बड़े पतझड़ भी गुजरे हैं
अगर डूबा था दिन तो , रात भी तो रह नहीं सकती
@सरोज यादव

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28 NOV 2021 AT 20:51

मेहरबां हुआ जो समय मसखरों पर
सुना !! फिर जुबाँ चल पड़ी बेतहाशा

दुबारा नहीं चढ़ती , लकड़ी की हांडी
सुना उनकी गलियों में फैली निराशा

भरम है , टिके आशियाना हवा में
उखड़ जाते है पाँव उछलो जरा सा

मुखौटों से कब तक बढ़ाओगे रौनक
झलक जाए चेहरे से आखिर हताशा

शहर बन के उजड़ा, उजड़ कर बसा है
किसी ने मिटाया , किसी ने तराशा
@सरोज यादव

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1 NOV 2021 AT 6:22

कोई मंजिल कठिन ना थी तुम्हारा साथ मिल जाता
हम हर बिगड़ी बना लेते , तुम्हारा साथ मिल जाता

हम अपने आप से अपनी शिकायत खूब करते हैं
नहीं खुद को सजा देते , तुम्हारा साथ मिल जाता

बसर करते हैं कांटो में , नहीं अहसास ए नरमी है
यहां गुलशन सजा देते , तुम्हारा साथ मिल जाता

बनाया घर वीरानों में , शहर उजड़ा सा लगता है
जहाँ आबाद कर लेते , तुम्हारा साथ मिल जाता

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