बामुश्किल मिटाती हूँ हर हर्फ तसव्वुर का,तुम आकर,तुम लिख जाते हो । मेरी तन्हाई मेरे आँसु हर जख्म खुला छोडा, तुम आकर,हर मरहम हो जाते हो ।। जाने क्यूँ भूल जाती हूँ हर दर्द तेरा दिया तेरे आने के बाद, बर्बाद हर हसरत को आबाद कर जाते हो
क्या हो कोई जादूगर तुम कि जानते हो नजर बांधना हर टीस हर दर्द हर शिकायत, हर जख्म भूला जाते हो, आए हो तो कोई नया दर्द लाए होगे,, तुम कहाँ कभी खाली हाथ आते हो ।।।
वह स्वयम शिला सा सभ्य शिल्पकार है बना कर मिटाता ,मिटा कर बनाता जड़ को चेतन करता,चेतना मे जडता भरता उम्दा अभ्यासकार है वह स्वयम शिला सा सभ्य शिल्पकार है। है क्या आसान इतना,मेरे हर क्षण मे विद्यमान है परोक्ष होकर भी प्रत्यक्ष वो क्या यही आत्मज्ञान है मेरी धड़कन मे सांसे भरता,ये कैसा मायाजाल है वह स्वयम शिला सा सभ्य शिल्पकार है बना कर मिटाता ,मिटा कर बनाता जड़ को चेतन करता,चेतना मे जडता भरता उम्दा अभ्यासकार है
मैने जब-जब लौट आना चाहा तब-तब तुमको बदला पाया । ढह गया आस्तित्व सारा, टूट गया हर इक किनारा , सर्द पडती रातों मे तेरी बीती बातो मे तंग पडती `दिल की गलियों मेʼ मै भूल आई जो था हमारा प्यार का अपभ्रंश सारा ।।