जो जा चूका उसे पुकारना अच्छा नहीं लगता... चांद दिखते ही वो याद आना अच्छा नहीं लगता... और उसके दीदार को बंजारों की तरहा घूमता हुं उसकी गलियों में मग़र उसे मेरा आना भी अच्छा नहीं लगता...
सुनाने लगे गमे दास्ताँ वो जब उस दिन बारिश बहुत थी मैं समझ ना सका पानी और आसूं का फर्क तब... दिया था कंधा उसे संभालने को क्या मालूम था एक दिन करेगा ये बे सिर उसी को... ठीक है मग़र अब रोएगे नहीं इन पलकों को अब भीगोएंगे नहीं मग़र जाते जाते एक बात सुनते जा कि अब तू भी खुश तो रहेगा नहीं...