Sanjay Tripathi   (संजय त्रिपाठी)
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रग रग में है साहित्य और सियासत..
आशावादी..🙏🙏
Joined 20 September 2017


रग रग में है साहित्य और सियासत..
आशावादी..🙏🙏
Joined 20 September 2017
15 JUL 2020 AT 20:14

बुद्ध है तीनों तरफ़, पर बुद्ध को न चुन रहे है,
अपनी क्षमता के मुताबिक युद्ध को ही बुन रहे है,
कोई कितनी भी करे संस्तुति शांति मार्ग की पर
शक्ति जिसके पास है अब सब उसी की सुन रहे है।

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20 APR 2020 AT 20:27

कल तक लिंचिंग बड़ा प्रश्न था
और आज है शून्य,
साहब मैं पूछता हूँ आप लोगों से
आप लोगों के पास कोई पैमाना है क्या
लिंचिंग मापने का..?
क्या उन लिंचिंगों में ज्यादा दर्द था
जब आपकी कराहे निकल रही थी
चीख चीख कर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से
मैं जानना चाहता हूँ तमाम सेक्यूलर बुद्धिजीवियों से
कहाँ से लाते हो इतना दोगलापन..?
कब तक केवल एक पक्ष की बात करके
उनके गलत होने पर भी
उनके हक़ हुक़ूक़ के लिए लड़ लड़ के
अपने आप सेक्यूलर बने रहोगे..?
और धकेलते रहेंगे पूरे समाज को
भेदभाव और वैमनस्यता के दलदल में...?

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16 APR 2020 AT 17:12

जीवन के इस खूबसूरत गणित में
हमारी कई कोशिशों के बाद
हम दोनों के रिश्तों में, कभी भी..
वो ठहराव नही आया
जो हमें एक वृत्ताकार रूप दे कर
हमें हमेशा के लिए एक कर सके
जहाँ जीवन के एक निश्चित पथ पर
हम दोनों एक दूसरे पर आकर रुक जाए..
पर जब भी हम
कोई ऐसी घटना होती है
जहाँ हम खुद को टूटा या हारा हुआ महसूस करते,
या खुद को जीवन के प्रारम्भिक बिंदु पर खड़ा हुआ पाते तो
हमें जीवन के अगले किसी बिंदु तक ले जाने वाली
एक गतिमान रेखा के रूप में
आपसी अस्तित्व को
हम दोनों सहर्ष स्वीकार कर लेते है,
शायद प्रेम का यही स्वरूप
हम दोनों के लिए प्रारब्धिक है..

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16 APR 2020 AT 17:10

तुम जो कह दो तुम्हारे लिए रोज़ मैं,
जिंदगी के नए बंद लिखता रहूँ..

शूल से मेरे जीवन में तुमने सदा
फूल खुशियों का हँस हँस के अर्पण किया
जब भी सहमे या ठिठके कदम राह पर
तुमने खुद को हमारा है दर्पण किया..
अब तुम्हारे समपर्ण के मानिंद मैं,
भावना के नए छंद लिखता रहूँ..
तुम जो कह दो तुम्हारे लिए रोज़ मैं,
जिंदगी के नए बंद लिखता रहूँ..

तेरे होने से मन के यहाँ पर मेरे
कल्पना के सभी तार झंकृत हुए
मूक वाणी के तेरे हाँ आमोद से
शब्द के सारे संसार विस्मृत हुए..
वाकपटुता के भारी छलावो में; मैं
मौन के सारे आंनद लिखता रहूँ..
तुम जो कह दो तुम्हारे लिए रोज़ मैं,
जिंदगी के नए बंद लिखता रहूँ..

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24 MAR 2020 AT 1:58

होती है ऐसी बहुत सी प्रेम कहानियाँ
जो शुरू होती है चारागाहों पर
जहाँ पशुओं को चराने जाता हैं एक चरवाहा,
और जहाँ आती है एक लड़की
तोड़ने सफ़ेद और लाल तिपतिया के फूल
जिनसे बना सके वो फूलों का गुलदस्ता,
और फिर वो पाती हैं
पत्तों पर लिखा हुआ प्रेम पत्र
जिन्हें वो पढ़ती है
और जिनका प्रतिउत्तर देती है
संभल कर अपने आँखों और मुस्कान से
फिर जैसे जैसे ढलने लगता है दिन
ढलने लगती है ये प्रेम कहानी भी
फिर वो चरवाहा किसी भैंस पर सवार होकर पार कर जाता हैं नदी
और ख़त्म हो जाता है एक अध्याय नदी के मुहानों पर..
पर वो प्रेमिका
संभाल कर रखती है अपने प्रेम पत्रों को
गांव के छोर को पहुँचने तक,
और जैसे जैसे बढ़ती है घर की तरफ
वह अपने प्रेम पत्रों को
खिलाते हुए चली जाती है बकरियों को
और अमर कर देती हैं अपनी प्रेम कहानी को..

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18 MAR 2020 AT 19:53

जब कड़ाके की ठंड या चिलचिलाती धूप में
अपनी आजीविका के लिए
बड़े बड़े शॉपिंग मॉल के सामने
करतब दिखा रही होती हैं छोटी छोटी बच्चियाँ,
तो मैं उम्मीद करता हूँ कि..
उस रोड से स्कूल जाते या घर लौटते लड़कों में से
किसी न किसी के गार्जियन या खुद वो लड़का
रोक कर अपनी कार या साईकल
निकाल कर दे दे उसे दस रुपये,
अगर ऐसा नही होगा तो
मैं चुरा लेना चाहता हूँ उस लड़के का टिफिन
उसकी जुराबें और उसका स्वेटर
और ले जाकर दे देना चाहता हूँ
उस बच्ची को,
जो बड़ी हो जाती है वक़्त से पहले
जो निभाना सिख गयी है अपनी जिम्मेदारियों को
पर जिन्हें सिखाया नही गया चोरी करना,
और जो मुस्कुराते हुए रोज़ खेलती है
जिंदगी के चौसर पर मौत से आँखमिचौली..

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17 MAR 2020 AT 22:34

घर में बीमार पड़ा है एक जवान बेटा
और जब चुनाव नजदीक आने पर
गाँव घूमने आते है नेता
तो
पत्नी माँगती रह जाती है दवा
और पति को मिल जाता है दारू..
इतना सब कुछ होने पर भी
जब उसकी आँखों के सामने
टूटते जाते है सारे हौसले और उम्मीदें
तब भी टूटती आँखों से भी देखती है
बेटियाँ के आसमान छूने का ख़्वाब
इसलिए जब भी आंगनबाड़ी केंद्र जाती है
तो मैनेजर से मांग कर ले आती है
बेटियों के लिए कलम और किताब..
ऐसी होती है बहुत माताएं
जो अपने बच्चों के सपनों और सहूलियत के लिए
बन जाती बेबस और लाचार
ताकि पूरा कर सके उनके सपनों को यथार्थ में
और इस अनजाने में ही वह माँ बुन लेती है
कई सामाजिक चिंतको,शिक्षाविदों और दार्शनिकों द्वारा
कल्पित आदर्शवादी समाज को..

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23 FEB 2020 AT 22:53

हम जीवंत करना चाहते है
हमारे साधारण प्रेम को,
प्रेम की सुनी गई
कई अनूठी किस्सागोईयों की तरह,
जहाँ तुमको बनना होता है एक सतरंगी चिड़िया
और मैं ओढ़ कर गुलाबी रोशनी
बनना चाहता हूँ गुलाबी आसमान,
महसूस करना चाहते है हम अपने प्रेम को,
पर थोड़ी से अनबन से
ठंडी पड़ जाती ही
हमारी संयुक्त आकांक्षाएँ
हो जाते है हम एक दूसरे के विपरीत
तुम मौन हम मुखर, हम मौन तुम मुखर...

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25 DEC 2019 AT 5:36

इस देह की अपनी मनोदशा से प्रतिदिन
एक ही आत्मनिवेदन होता है; कि
तुम्हारी प्रतीक्षा में बैठी आत्मा को
शून्यता में विलीन कर दे,
पर उन सभी स्मृति और भूली बिसरी
गतिविधियों और रीति रिवाजों के मध्य
सृजित और स्थापित हुए
हमारे अनगढ़ और रूपाकार प्रेम ने
मुझे तुम्हारे वापस आने तक के लिए प्रतीक्षारत कर रखा है,
इस प्रतीक्षा में तुम्हारे लौट आने का स्वाद
उमंगित कर देता है रोम रोम को
सिहरा देता है मन में उन
नवसृजित अंकुरित अनुभवों को,
जो उपजा उस तालाब की ठंडी सिहरन में,
जो पनपा उन गरजते मेघों के कम्पन में,
जो फूला-फला उस सांझली लाली की पुलकन में,
जिसने परिभाषित कर लिया अपना स्वरूप
हमारे अर्धनिर्मित किशोरावस्था में,
जहां हमें अलगाव का भास होते हुए भी
प्रेम की सभी संभावित संयोगों को
हमने मिलकर प्रेममत्त और अभिलाषित बनाया था...

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15 OCT 2019 AT 19:09

तुम भले ही मुझसे रूठ गए,
पर मुझमें तुम कुछ छूट गए,
जितने भी भ्रम था पाले मन
तेरे जाते ही सब टूट गए...

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