अपनी हक़ीक़त छिपाना, ज़रूरी है क्या.....?
बनावटी ख़ूबसूरत नज़र आना, ज़रूरी है क्या.....?
क्या काफी नही, बस एक प्यारी सी हँसी.....
चेहरे को,काजल,बिन्दी, लाली के पीछे छिपाना,
ज़रूरी है क्या.....?
क्या काफी नही, मुहब्बत भरा ल़हज़ा,किसी को
अपना बनाने की ख़ातिर.....
ये कानों में झुमके, हाथों में चुड़ियां, पैरों में पाजेब......
इनके बोझ तले, ख़ुद को दबाना ज़रूरी है क्या.....?
क्या काफी नहीं समेट लेना हर परेशानी,बंधे हुए बालों में....
खोल ज़ुल्फें, उनमें उल्झे नज़र आना,ज़रूरी है क्या.....?
क्या काफी नहीं ये ज़रा पूराना,हल्के रंग का
मेरा पसंदीदा लिबास.....
जो औरों को भाए,वैसे जोड़े में नज़र आना,
ज़रूरी है क्या.....?
क्यूँ काफी नही,मेरा बस मेरे जैसा होना.....
ज़माने की नज़र में,ज़माने की नज़र से,नज़र आना
ज़रूरी है क्या.....?
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