Sameer Dwivedi   (समीर)
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I sculpted clay, wood, metal n all , Now I'm sculpting poetry "THE SOUL WORDS"
Joined 3 February 2017


I sculpted clay, wood, metal n all , Now I'm sculpting poetry "THE SOUL WORDS"
Joined 3 February 2017
4 JUL 2020 AT 23:41

इक तस्वीर हुआ करती थी
अब फ़क़त फ्रेम टंगा है
फ़रार हो गयी
जो याद रहा करती थी
चार दिवारी में

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21 NOV 2019 AT 22:23

कमरे में मेरे मजमा लगा रखा है
ख़ामोशियाँ इतना क्यों शोर करतीं हैं

रौशनी की ज़बरदस्ती देखो रौशनदानों से
घुसने की हिमाक़त पुरज़ोर कारतीं हैं

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21 NOV 2019 AT 22:15

नब्ज़, धड़कन-ओ-साँस जाने क्या-क्या चले है
ठहर कर ख़ुद को सुनु हूँ तो पता चले हैं

तेरी एक आहट सी आयी थी मेरे कानों तक
और सारा ज़माना कहे है कि हवा चले है

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21 NOV 2019 AT 22:10

नब्ज़, धड़कन-ओ-साँस जाने क्या-क्या चले है
ठहर कर ख़ुद को सुनु हूँ तो पता चले हैं

तेरी एक आहट सी आयी थी मेरे कानों तक
और सारा ज़माना कहे है कि हवा चले है

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23 OCT 2019 AT 22:13

तुम्हारा जाना मुझ पे जाने क्या असर कर गया
मैं तो स्टेशन पर ही हूँ, बदले में जाने कौन घर गया

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22 AUG 2019 AT 23:49

खड़ा था मैं संग तुम्हारे पर
नहीं था मेरी आँखों के सामने

सागर तो मेरी बगल में था

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18 AUG 2019 AT 12:23

एक उम्र दराज़ शायर है
नज़्में इसकी अबतक जवां हैं
ये अपने बालों में खिज़ाब नहीं लगाता
मगर स्याही अब भी काली स्तेमाल करता है

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15 JUL 2019 AT 21:47

नख से शिख,
फ़र्श से अर्श,
ओर से छोर, और
आदि से अन्त
के बीच जो सीमित
दूरी है, इसके विपरीत
एक अनंत अंतराल है
हम उसे अपने प्रेम का
मात्रक मानेंगे

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10 JUL 2019 AT 23:13

एक तो बिजली और काले मेघों की नोंक-झोंक
उस पर सावन की अनवरत बरखा 
तिस पर  मुझ अकेले का,
हम दोनों के हिस्से का भीग जाना
यही वह क्षण है जब मैं तुम्हारे
विरह का जीवन छन्द गुनगुनाता हूँ 

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26 JUN 2019 AT 15:08

रोज़ाना लाखों जद्दोज़हद थी मेरे आगे
मगर एक ज़िन्दगी भी थी मेरे हाथों में

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