इस कदर हावी है अक्स उसका,कि मुझे दिन के उजाले में भी चाँद दिखता है।ग़ालिब ये मेरे कलम की तारीफ है,कि हज़ार खामियों के बावजूद ये उसे चाँद लिखता है। -
इस कदर हावी है अक्स उसका,कि मुझे दिन के उजाले में भी चाँद दिखता है।ग़ालिब ये मेरे कलम की तारीफ है,कि हज़ार खामियों के बावजूद ये उसे चाँद लिखता है।
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मेहबूब की कैफ़ियत में उतरे, डूबेऔर फिर किनारा कर गए,आशिक़ कब कहाँ किसीके हुए। -
मेहबूब की कैफ़ियत में उतरे, डूबेऔर फिर किनारा कर गए,आशिक़ कब कहाँ किसीके हुए।
सूरत पे उसकी चाँद दिखता है,निगाहों में उसकी शराब दिखता है।कैसे देखूँ मैं कहीं और भला,बदन जो उसका गुलाब दिखता है। -
सूरत पे उसकी चाँद दिखता है,निगाहों में उसकी शराब दिखता है।कैसे देखूँ मैं कहीं और भला,बदन जो उसका गुलाब दिखता है।
बागी परिंदों से इंतकाम लेने का सबसे बेहतर तरीका है,उसे हमेशा के लिए आज़ाद कर दो। -
बागी परिंदों से इंतकाम लेने का सबसे बेहतर तरीका है,उसे हमेशा के लिए आज़ाद कर दो।
ये टूटना, ये गिरना, ये बिखरना,महज़ पतझड़ की पत्तियों की बात नहीं,ये रस्म-ए-मोहब्बत है।ये खिलना, ये इतराना और फिर मुरझाना,बसंत की कलियों की बात नहीं,ये अंजाम-ए-कैफ़ियत है। -
ये टूटना, ये गिरना, ये बिखरना,महज़ पतझड़ की पत्तियों की बात नहीं,ये रस्म-ए-मोहब्बत है।ये खिलना, ये इतराना और फिर मुरझाना,बसंत की कलियों की बात नहीं,ये अंजाम-ए-कैफ़ियत है।
मुकम्मल मोहब्बतें शादियों में कहीं खो जाती हैं,जो अधूरी रहती हैं, वही तो दास्ताँ हो जाती हैं। -
मुकम्मल मोहब्बतें शादियों में कहीं खो जाती हैं,जो अधूरी रहती हैं, वही तो दास्ताँ हो जाती हैं।
उफ्फ ये मोहब्बत, ये बेबसी,कुछ तेरी भी, कुछ मेरी भी,इस जनम दास्ताँ रह गई अधूरी,मेरी जाँ, चलो मिलेंगे फिर कभी। -
उफ्फ ये मोहब्बत, ये बेबसी,कुछ तेरी भी, कुछ मेरी भी,इस जनम दास्ताँ रह गई अधूरी,मेरी जाँ, चलो मिलेंगे फिर कभी।
तेरे बगैर एक एक लम्हा, लम्हा नहीं मौत होता है,और मैं हर लम्हा ऐसी मौत से गुज़रता हूँ।तेरी चाहत में हर रोज़ समेटता हूँ खुद को,फिर हर रोज़ तेरी मोहब्बत में बिखरता हूँ। -
तेरे बगैर एक एक लम्हा, लम्हा नहीं मौत होता है,और मैं हर लम्हा ऐसी मौत से गुज़रता हूँ।तेरी चाहत में हर रोज़ समेटता हूँ खुद को,फिर हर रोज़ तेरी मोहब्बत में बिखरता हूँ।
वो खाब की तरह एक रोज़ मेरे ख्यालों से टकराई,फिर दूर जाकर कहीं आसमानों में उड़ती रही।मैं चाहता रहा उसकी नज़्मों में पढ़ूँ खुद को,और वो अक्सर बस रकीब को लिखती रही। -
वो खाब की तरह एक रोज़ मेरे ख्यालों से टकराई,फिर दूर जाकर कहीं आसमानों में उड़ती रही।मैं चाहता रहा उसकी नज़्मों में पढ़ूँ खुद को,और वो अक्सर बस रकीब को लिखती रही।
तोहर होंठवा के चुमब एतना कि लाल हो जाई,अबकी होली तनी रंग आ तनी गुलाल हो जाई,पकड़ के कसके तोहरी बहियाँ, सुना ए करेजा,मारब पिचकारी अइसन कि मोहल्ला में बवाल हो जाई। -
तोहर होंठवा के चुमब एतना कि लाल हो जाई,अबकी होली तनी रंग आ तनी गुलाल हो जाई,पकड़ के कसके तोहरी बहियाँ, सुना ए करेजा,मारब पिचकारी अइसन कि मोहल्ला में बवाल हो जाई।