Salil Saroj   (सलिल)
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Joined 21 February 2018


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Joined 21 February 2018
2 FEB 2022 AT 19:23

अख़बार बदलने से समाचार नहीं बदलते
किरदार बदलने से अदाकार नहीं बदलते— % &

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29 JAN 2022 AT 19:31

दिल को शुकून , चैन - ओ - करार आता था
जब मसअला यूँ ही बातों से हल हो जाता था— % &

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25 JAN 2022 AT 10:24


आज सरहद पे जहाँ लकीरें हैं
वहाँ कभी कोई घर होगा
चाँदनी में नहाई हुई शाम होगी
रोशनी में भींगा हुआ सहर होगा



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20 JAN 2022 AT 17:44

मैं मंझधार में हूँ  , किनारा  चाहिए
मुझे तेरी जुल्फों का सहारा चाहिए

रोशनी,मेरी आँखों में चुभने लगी है  
मुझे तेरी काजल का अंधेरा चाहिए

मेरी  साँसों  में  एक  ही  खुशबू हो
वो  भी तेरे  बदन से उतारा चाहिए

तेरा आँचल ही काफी है कुर्बत* को
मुझे न कोई सलमा -सितारा चाहिए

ज़िन्दगी दर्द से भी बसर हो जाएगी
लेकिन दर्द भी, बस तुम्हारा चाहिए

तुझ से मिल कर मैं फना हो जाऊँ
तो ऐसी  मौत  मुझे दोबारा चाहिए

*कुर्बत-नज़दीकी

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17 JAN 2022 AT 17:01

न किसी की छत, न किसी की नज़र में रहता है
चांद, न जाने आजकल , किस शहर में रहता है

बचपन नजर-बंद है चका-चौंध चार- मीनारों में
अब न तो ये मैहर में रहता है, न नैहर में रहता है

हमने बचा लिया खुद को, तूफान की जद में लाकर
बर्बाद वो हुआ, जो वक्त-बे-वक्त घर में रहता है

मालूम था कि मारे जाएंगे, फिर भी प्यार कर लिया
अब देखें, हमारा नाम किस निगाह-ए-खंजर में रहता है

मेरे वतन में मौसम नहीं, माली तय करता है
कि फूल यहाँ , किस शज़र में रहता है

खुदा किसी दर-ओ -दीवार का बंदी नहीं
वो हर किसी मजहर* में रहता है

*मजहर - छवि

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27 DEC 2021 AT 14:48

दुनिया की छोड़ो, मेर वश में तुम भी नहीं
तुम्हारी  ख़ुशी  नहीं, तुम्हारा  ग़म भी नहीं    1

मेरी तासीर पे  अब कुछ असर करता नहीं
तुम्हारी सच्चाई नहीं, तुम्हारा वहम भी नहीं   2

तुम्हें कैसे पुकारूँ मैं , समझ में आता नहीं
तू मेरा दुश्मन नहीं, तू मेरा सनम  भी नहीं    3  

तुम्हें याद करने की कोई वाज़िब वजह नहीं
तू मेरा  दर्द  नहीं, तू  मेरा  मरहम  भी नहीं  4  

तुम्हें ना देखें तो अब मरने की नौबत नहीं
तू मेरा  चैन  नहीं, तू मेरा  मातम भी नहीं    5

कौन कहता है तुम्हारे बग़ैर जिया जाता नहीं
तू  मेरा  वायदा नहीं, तू  मेरा कसम भी नहीं 6

सलिल


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17 DEC 2021 AT 17:56

कहीं झरना तो कहीं कंवल लगता है
तुम्हारी आँखों में कोई जंगल लगता है

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10 DEC 2021 AT 10:48

गरीब  जब  वाज़िब सवाल करता है
हुक्मरानों का जीना मुहाल करता है

राज़ दफ़्न हैं कई, हर चौक - चौराहे  पे
कौन है यहाँ जो जाँच-पड़ताल करता है

बात आ पहुँची है जाति,धर्म, बिरादरी पे
रोटी ना मिलने पे कौन बवाल  करता है

शासन उसी का ज़िंदा और  महफूज़ है
जो कभी कश्मीर कभी बंगाल करता है

खून से सनी  दोपहर  ही आएगी हिस्से में
मेर दोस्त,क्यूँ हर सुबह इंक़लाब करता है

अब के ख़ुशहाली  हर  घर तक आएगी
और ये वायदा वो हर साल करता है  

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3 DEC 2021 AT 17:13

क्यूँ हमारे नस्ल को ये विरासत मिली
हवस में लिपटी हुई सियासत मिली

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2 DEC 2021 AT 15:47

सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए , स्वेता सिंह

सफर  कुछ  यूँ आसान हो गया
जो मेहमाँ  था,  मेहरबाँ हो गया

रास्ते  सब हसीन  लगने  लगे हैं
वो ज़मीं, वो ही  आसमाँ हो गया

उसे पा कर और कोई चाह नहीं
वही मुर्शिद, वही मकाम हो गया

मेरी रूह में घुला है  वो इस तरह
मेरी धड़कन, वो ही ज़ुबाँ हो गया

मेरा और  कोई  दूसरा ठिकाना नहीं
वो ही मकीं, वो ही मेरा मकाँ हो गया

वो खुदा , मेरा  भगवान हो गया
मेरी आरती, मेरा आजां हो गया

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