Sakshi Yadav (Chetna)  
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Optimistic , dreamer , feminist , novel & poetry lover
Joined 20 February 2019


Optimistic , dreamer , feminist , novel & poetry lover
Joined 20 February 2019
24 MAR AT 21:12

कुछ अपने नीचे ख्वाब रखें थे
कुछ पुराने खत रखें थे
कुछ आंसू सोख रखें थे
कभी सीने से लगकर
धड़कनो के कुछ साज समेट रखें थे
वो तकिया ही था सिर्फ जनाब
जिसने ख़ामोशी से मेरे हर
जज़्बात संभाल रखें थे....

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13 APR 2023 AT 21:00

काली स्याह रात में
किस्सा पुराना याद आ रहा है
मशहूर था जो कभी मेरे शहर में
वो मोहब्बत का फ़साना याद आ रहा है
तुम वादे-इरादे और गज़लो
की बात छोड़ो यार
मुझे तो उसका मुस्कुराकर
नज़रे मिलाना फिर
नज़रे मिलाकर
नज़रे चुराना याद आ रहा है
काली स्याह रात में
किस्सा पुराना याद आ रहा है

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11 MAR 2023 AT 23:29

छुपाकर सबसे निगाहों से कही थी जो बात तुमने,
आज कोरे कागज़ पर वही हसीं राज लिख रही हूँ...
किस्मत और जमाने पर ऐतबार नहीं है मुझे
ना जाने किस पल जुदा कर दें हमें
इसलिए तुझे हमसफ़र नहीं हमराज़ लिख रही हूँ...
साथ बिताये थे जो हमने पल कभी
मैं उस खुशनुमा बीते पल को अपना आज लिख रही हूँ..
तेरे सीने में जो धड़कता है दिल
जिसकी धड़कनो को तू महज शोर कहता है
मैं उसी शोर को अपने जीवन का
सबसे मधुर साज लिख रही हूँ...
आज कोरे कागज़ पर वही हसीं राज लिख रही हूँ...

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8 FEB 2023 AT 23:46

देखो न
कितना मुश्किल है करना इज़हार
शब्दों में करना प्रेम को स्वीकार
पता तो है तुम्हें सबकुछ
खुली किताब सी हूँ न
मैं तो तुम्हारे लिए
जानते तो हो अच्छी तरह
मेरी ताकत को भी और
मेरी कमजोरीयों को भी
कब जीत लेती हूँ मैं हर जंग
और कब मैं जाती हूँ हार
तो समझ जाओ ना
मेरे अधरों तले दबे
मौन शब्दों को
कर लो मेरा प्रेम स्वीकार
देखो न
कितना मुश्किल है करना इज़हार
शब्दों में करना प्रेम को स्वीकार

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8 FEB 2023 AT 18:15

ना जाने वक़्त का कैसा
हसीं सितम हुआ है हम पर
जिस खता की थी दुआ हमने बरसो पहले....
वही खता हम इन दिनों बार-बार करते है
पता है हमेशा कि मौजूद नहीं है हमारे पास
पर फिर भी ना जाने क्यों
हर पहर, हर जगह, हर कोने में
ये दिल आपकी तलाश बार-बार करता है
कभी झूठ बोला तो कभी मुँह मोड़ा आपसे
आज तक छुपाया है ये सच
हर लम्हा आपसे कि..
हम आपसे प्यार बेइंतहा प्यार करते है।

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19 OCT 2022 AT 21:34

किसी नदिया सा बहता रहा वो
मैंने कितना ही डपटा उसे
खामोश रहने का इशारा किया
पर चुप नहीं रहा मुझमे वो
हर दफ़ा कुछ ना कुछ कहता रहा वो
एक बार को कल्पनाएं मेरी शांत भी हुई
पर हर बार मुझमे कुछ नया गढ़ता रहा वो
मैं अंधेरों से घबराकर रुक भी गयी राह में
पर जुगनूओं की रौशनी पाकर भी
मुझमे साहस भर आगे बढ़ता रहा वो

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19 OCT 2022 AT 9:02

तेरी क़ातिल निगाहों के चर्चे
यूँ ही आम नहीं है
इस शहर की गलियों में और चौराहो पर
इनमे झाँकता हूँ तो पूरी कायनात घूम लेता हूँ
तेरे सुर्ख गुलाबी रुखसारों को लबों से छूने की
तमन्ना तो बहुत है दिल-ए-नादान की
पर मैं समझता हूँ तेरी मजबूरियों को
हमारे दरमियाँ की दूरियों को
इसीलिए तो तेरी डीपी को ही
जूम कर के चूम लेता हूँ

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8 OCT 2022 AT 20:21

खुले गगन तले किसी
हसीं चांदनी रात में
तेरे सीने पर सर रखकर
तेरी धड़कनों का गीत सुनना है मुझे
जब पुरवाई पास पड़े
रजनीगंधा के फूलों को छूकर गुजरे
तो उसकी खुश्बू से मदहोश हो
तेरे नर्म लबो को चूमना है मुझे
हमें यूँ बेफिक्र देख...
आसमान के काले बादलो में
चाँद शर्माया सा छिपता है जैसे
ठीक वैसे ही तेरी बाहों में छिपना है मुझे
तुम खामोश ही रहना...
अपनी चिर परिचित मुस्कुराहट के साथ
मुझे थामे हुए किसी छोटे बच्चे के मानिंद
बड़े एहतियात के साथ
इस ख़ामोशी को लफ्ज़ो में पिरोना है मुझे।

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17 AUG 2022 AT 23:15

क्या जरूरी है
हर बार कुछ कहना
या कुछ लिखना
अपने मन की बात
सुनाने के लिए
शब्दों को प्रयोग में लाना
एक बार तुम
मेरे मौन को भी
सुन लो ना...
तुमसे भी शब्दों की
उम्मीद नहीं है मुझे
बस मेरे हाथ को
अपने हाथ में लेकर
पलकें झपकाककर
एक मौन स्वीकृति
दे दो ना...


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7 AUG 2022 AT 10:39

यूँ बात-बात पर सताना
किसको अच्छा लगता है
कोई दिलनशी हो तो बात बने
हर किसी से दिल लगाना
किसको अच्छा लगता है
ये मुस्कुराहट तो जवाब है
अपनों के साजिशों की
यूँ बेवजह ही मुस्कुराना
किसको अच्छा लगता है
यकीन किया होता अगर
तुमने मेरा तो
झूठ की दिवार ना होती दरमियाँ
यूँ अपनों से सच छिपाना
किसको अच्छा लगता है
मेरे महबूब तेरे महफ़िलो की शमा
अब चुभती है मेरे आँखों को
वरना मेरे हमनफ़ज
तुझे यूँ छोड़कर तन्हा
मयखाने जाना
किसको अच्छा लगता है

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