Sagar Joshi   (✍️-( SAGAR JOSHI ))
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Joined 15 May 2020


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Joined 15 May 2020
20 JUL 2023 AT 19:49

"मौन का अभाव समक्ष व्यक्ति को समझने में सबसे बडी बाधा है" |
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" The absence of silence is the biggest hurdle to get someone"

✍️ philosophy of sagar joshi

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26 DEC 2021 AT 18:21

"श्री दुर्गा नमस्कारं स्तुति"🙏🙏




पूर्ण स्तुति अनुशीर्षक मे पढे ||

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11 APR 2021 AT 23:17

" माना मेरी बातों में मेरा कोई मतलब नहीं होता ,

पर बे-मतलब मेरी कोई बात नहीं होती "।।

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8 APR 2021 AT 19:14

" स्त्री प्रत्येक पुरुष की जननी है ,|

यद्यपि प्रत्येक पुरुष निर्माता होता है , स्वयं के पौरुष का " ||
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" Woman is the mother of every man,
Although every male is the creator, his own masculinity ".


✍️ philosophy by (Sagar Joshi)

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25 MAR 2021 AT 12:29

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21 MAR 2021 AT 1:53

" Nature makes superior than every best" ___________________________________

Got away with.! Someone left you!
In that case, instead wasting your time to get the temporary pleasure from someone else , if you spend most of your time in your solitude to make yourself, then that person's mother or father will be automatically get you.

✍️- Philosophy of sagar joshi..

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17 MAR 2021 AT 14:51

गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ?
शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ?

उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,
तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था;
सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गये थे,
निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गये थे;

गीता में जो त्रिपिटक-निकाय पढ़ते हैं,
तलवार गला कर जो तकली गढ़ते हैं;
शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा का,
शेरों को सिखलाते हैं धर्म अजा का;

सारी वसुन्धरा में गुरु-पद पाने को,
प्यासी धरती के लिए अमृत लाने को
जो सन्त लोग सीधे पाताल चले थे,
(अच्छे हैं अबः; पहले भी बहुत भले थे।)

हम उसी धर्म की लाश यहाँ ढोते हैं,
शोणित से सन्तों का कलंक धोते हैं।

स्रोत: परशुराम की परीक्षा- रामधारी सिंह दिनकर

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16 MAR 2021 AT 9:45

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4 MAR 2021 AT 22:07

" अजीब विडंबना संसार की " ।।
" जहां जलने वाले लाखों है ,
लेकिन जलने वाला एक नहीं "।।

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19 DEC 2020 AT 13:34

सोचता हूं कोई अधूरी कहानी लिखूं ।

जिसमे बुढ़ापा छोड़ बचपन और जवानी लिखूं ।।

हर बुरे मौसम काट फेकूं इस कहानी से ।

तेरे हिस्से में बस मैं रूत सुहानी लिखूं ।।

आलम ए तसव्वुर लिखूं , फिर लिख कर मिटा दूं ।

अपने हिस्से में बस नादानी लिखूं ।।

एक मुल्क लिखूं जो किसी नक्शे में ना हो ।

फिर तुझे उस सुंदर मुल्क की रानी लिखूं ।।

सोचता हूं , कोई अधूरी कहानी लिखूं ।

बुढ़ापे को छोड़ बस बचपन और जवानी लिखूं ।।

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Poetry By -( Sagar Joshi.)

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