Sachin Sansanwal   (✍️ सचिन सनसनवाल)
1.1k Followers · 599 Following

Words are tool of thinking.
All post original © Copyright .
Joined 9 May 2018


Words are tool of thinking.
All post original © Copyright .
Joined 9 May 2018
10 APR AT 7:06

बुनकर अंधेरों में छुपाई हैं लाशें हजार,
लाशों पर बिखरी पड़ी हैं कहानियां,
रूहानी कहानियों से अटी है 'सच' धार,
कलम लेकर जो मैं बैठूं, सामने आएं घाट,
कभी पुकारे मणिकर्णिका, तो कभी हरिद्वार।।

-


7 APR AT 4:24

रखवाला बंजारा

शिक्षा के बड़े पुराने मंदिर में मिला था,
शिक्षक नहीं, काम उनका रखवाली था,
बाल, दाढ़ी, और मूंछ सब सफेद थे,
अतरंगी, पर भौंहें ही उनकी काली थी ।।१।।

दो बेटों और स्वर्गवासी पत्नी की कहानी सुनाई,
भैंसों से स्नेह और घर में कंगाली थी,
मॉं पर अच्छी कविताएं सुनाईं बहुत,
जब कानों में पड़ी राहगीर की गाली थी ।।२।।

लिखना सब कुछ चाहता था मगर,
पेन जो मांगा, जेब उनकी खाली थी,
कविताओं के लोभ में 'सच',
उनकों ढूंढ़ा बहुत... वर्षों तलक,
पर घर-परिवार की कहानी सब जाली थी ।।३।।

ध्यान किया एक रोज, रखवाली बस ढोंग था,
बंजारा था वह अद्भुत...
झोले में उनके एक थाली और प्याली थी,
बैंच पर बैठा मुझको ...
कुछ पल में जिंदगी सिखा गया,
औरों से हटके, आत्मा वो निराली थी । ।४।।

-


8 OCT 2023 AT 5:27

।। तेरे बिन ।।

शिखर पर पत्थरों को लहराने का...
गहरी वादियों को चिल्लाने का...
वास्ता ना मिला ।
सजते सवेरों में राहगीर को घर का...
बढ़ते अंधेरों में नदियों को आगोश का...
रास्ता ना मिला ।
शिखर से वादियों तक राहगीर रहा दौड़ता,
सवेरों से अंधेरों तक नदियां रही उफनती,
पर तेरे बिन, खामोश समुन्द्र प्यासा रहा ।।1।।

-


19 APR 2023 AT 23:05

अपने पसंदीदा व्यक्ति को मैंने दिल से उतार कर दिल में बैठा रखा है,
सलीके से देखा जाए तो बेरहम तो मैं खुद से भी ज्यादा हूॅं।।

-


22 JAN 2023 AT 3:38

कुछ बयां किया है लिखकर
कुछ बयां करना है ज़ुबानी
किताबों तले दबाएं हैं मुक्तक
नज़रों तले लिखनी है कहानी

-


23 DEC 2022 AT 3:05

शरद की काली रातों में
कुत्तें है जोर से भौंक रहे,
इंसान के परम वफादार
इंसानियत को है कोस रहे,
अनुभव है जो इनका कह रहा...
आजाद रूहें सड़कों पर घूम रही,
जिंदा लाशें रजाइयों में है सो रही।।

ज़बान-नाक तुम सब चढ़ाओ
पेट भरने को जो खाएं बोटियां,
काला रंग छांटकर जो तुम
प्रभात खिलाते दुग्ध-रोटीयां,
पंडित जी ने जो है बतलाया
तुम संग परिवार का भी पुण्य होगा।।

ना कभी पंडित जी से पूछा
ना कभी पूछा तुमने खुद से,
कि इन शरद की काली रातों में
बेकद्री से बेजुबान जब त्रस्त होगा,
तो वह क्यों ना पाप के तुल्य होगा,
बेघर जान को जो तुम अपना लो,
कुत्तों को भी इंसानियत का मूल्य होगा।।

-


12 SEP 2022 AT 4:09

मैं 'सच' और फिलोसोफी कुछ...
थोड़े से पूरे, थोड़े से कम !
Have so many answers,
But not the concrete one.

-


2 MAY 2022 AT 2:16

बेजुबान है कैदी, नहीं आईं 'चिड़िया' 'सच' बताने,
पिंजरे के बाहर गूंजी है जो आवाज़, चुडी़यों सी,
समाज में निडर स्याही को बदनाम तु होने दें,
नहीं है नाम की प्रीत अब, बाकी दुनिया सी ।।

-


14 MAR 2022 AT 6:11

चंद लम्हों की कुछ बातें फिजूल है जो
पर कुछ लोगों को बतानी भी जरूरी है,
जहर की शीशियां खाली पड़ी है जो
पर उनकी बातें याद दिलानी जरूरी है,
नमक कम हो गया उनकी जुबां पर जो
उनको पुराना ज़ायका याद दिलाना जरूरी है,
मेरे बुरे वक्त पर खुलकर हंसते थे जो,
उनके सम्मुख आज मुस्कुराना भी जरूरी है,
चंद लम्हों की कुछ बातें फिजूल है जो
पर कुछ लोगों को बतानी भी जरूरी है।

-


17 SEP 2021 AT 1:17

आप और तू

शहर में रहता है आप, तू में रहती है रूह,
आप कितने है काबिल, कितना बेकार है तू,
गांव पूछ रहा सवाल-
कैसे तू बन गया आप? एक नजरिए की हार से ।।

आप मकानों को छोड़िए,
तू तो घर-घर की बात है,
आप_के भारी सपनों और तू की फटी जेब में,
मासूमियत पूछ रही सवाल-
क्या निकलेगा हल? सही दो दूनी चार से ।।

-


Fetching Sachin Sansanwal Quotes