Sachin Saini   (Sachin Saini)
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Joined 2 January 2017


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14 JUN 2020 AT 22:50

दर्द ज़ख्म का नही नासूर का होगा शायद जिसका इलाज़ कहीं नही था।

हाँ वो नही बता पाया क्युंकि शायद उसके इतने पास कोई नही था।।

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27 APR 2020 AT 7:31

उसे लगता है वो मुझे छोड कर चली गई है तो मैं मर रहा हुँ...,
की यादों में उसकी आज तक भी सफ़र कर रहा हुँ....।

बात ये नही है की उसे ऐसा क्यूं लग रहा है...,
दरसल बात ये है की उसे पता कैसे चल रहा है...?

ना मैं उसे बता रहा हुँ ना कोई पैगाम किसी से भिजवा रहा हूँ....,
क्या वो अब तक इतनी जुडी है मुझसे...? क्या उसके ख्वाब में मैं आज भी आ रहा हुँ...?

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17 APR 2020 AT 3:56

नज़र से नज़र मिलाना बहुत जरूरी है...,

हमारा तेरे शहर में आना बहुत ज़रूरी है....।

मुक्कमल-ए-इश्क मेरा गर्दीश में बहुत है...,

तुझे गले से लगाना मेरा बहुत ज़रूरी है.....।।

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16 JAN 2020 AT 0:12

क्या कभी मिटेगा भी ये नासूर दर्द-ऐ-इश्क का ज़ख्म?

क्या भ्रम ये कभी उसकी वापसी का भी होगा खत्म??

जो जिसने दिया वो तो चला गया कभी का ही और खुश है बहुत...!

तड़प में गुज़रते से ज़िंदगी गुज़ारते यहाँ बस रह गये है हम..!!

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9 JAN 2020 AT 5:13

इश्क का अब आजकल ये फ़साना है,

ना पास खुदा ना साथ ज़माना है।

वक्त ही कराह रहा हो ज़ब उसकी ज़िंदगी में,

तो वो भी बेवफा है जो असल में दीवाना है।।

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6 JAN 2020 AT 21:50

आज भी मुझे उस लम्हे का इंतज़ार है..
जब,

तुम्हारी आँखें मेरी आँखो के सामने होगी..
तब,

शायद मैं ये भूल जाऊँ की इनमें खोया जाता है...
और

फिर याद करके बिछड़ कर इनसे अकेले में रोया जाता है..
बल्कि,

मुझे इनकी तरफ बढ़ कर...,
हाँ शायद तुम्हारे हाथों से लड़कर...,
पास आने की आहत से इन्हें..
बंद कर कर...,

बेन्तिहाँ मोहब्बत और बेहद नज़ाकत से...

इन्हें छूना है......

यकीन करने को इन्हें क्या मेरे इतने करीब है?..

इम्हें चूमना है

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6 JAN 2020 AT 21:09

मुस्कुराने से पहले वो जब ज़रा सा..... रुक जाती है,

दुनिया फिदा ना हो जाये कहीँ....... वो ये बात समझ जाती है,

पर उसे क्या पता धड़कने किधर को... थमती है मेरी,

छोटी सी आँखों पर उसकी.....मेरी जाँ अटक जाती है,

उसके बालों को गिनने में मेरी हर रात.... कट जाती है,

और अदा ऐसी, की हर बार मेरी नज़रे सजदे में.... झुक जाती है।

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25 OCT 2019 AT 23:49

आह....नही...।।।।

वो वक्त पर एक बार फिर से नज़र आ गई,
उतरी भी नही थी वो खुद को फिर से चढ़ा गई ।
गर नज़र ना लगे उसे तो आज उसे इतना देखूँ,
उतार लूं उसे खुद में इस कदर की
फिर कभी वक्त के इंतज़ार में ना बैठू ।।

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9 OCT 2019 AT 22:15

जो डूब कर इन्हे देख पाये,
उसके तो क्या नसीब है।

हसीन रुख पर तुम्हारे सजी,
ये आँखे कितनी अज़ीब है।।

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19 SEP 2019 AT 0:20

वो छुट रही है जिंदगी अभी जो हाथ आई भी ना थी,

खुद कहीँ ओर मुझे कहीँ ओर भेज दिया, ढ़ंग से विदाई भी ना दी

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