लोग बोलते हैं अक्सर शायरी,
चांद पर ही क्यूं लिखी जाती है।
है तो सूरज भी महान फिर,
उसके ही गुणगान क्यूं कि जाती है।
इश्क हो या जख्म,
सबको उसी की याद क्यों आती है।
ज्वार तो उठते हैं सूर्य के भी कारण,
फिर चांद को ही महत्व क्यों दी जाती है।।
पूछता हूं मैं उन सबसे,
क्यूं ना बने शायरी उसपर।
आखिर चोट खाकर भी तो वो,
बस यूं ही मुस्कुराता रहता है।
गहरी घोर अंधेरी रातों में भी,
मस्त-सा इठलाता रहता है।
तपिश को भी खुद पीकर,
शीतलता बिखेरता रहता है।
रात में भी सूरज का अस्तित्व,
आखिरकार वही तो बतलाता रहता है।
वो तो बस यूं ही मुस्कुराता रहता है,
मुस्कुराता रहता है, मुसकुराता रहता है।।
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