कहो- क्या मुसलसल है ये? तुम्हारा मैं और मेरा तू हो जाना। गर है तो रजा है कि हों ऐसा, ताकि मैं तू होकर जान सकूं मजबूरियां सारी, और तब शायद तुम मैं बनकर समझ पाओ तकलिफे मेरी, जो बस तेरे एक न होने पर जन्म लेती है और खाक होती है तो बस तेरे वजूद से। ताकि फिर मुझे तुमको और तुम्हें मुझको कोई तर्क न देने पड़े, यकीनन तब ये दूरी बस लफ़्ज़ों में ही होगी। क्योंकि तब - मै - तुम और तुम - मैं बनकर, रूहों में सच में समा चुके होंगे।
इस जहां से जुदा, एक जहां और भी है, मेरी कल्पनाओं का जहां, जहां तुम्हे बाहों में समेटे मैं लिखता हूं, और तुम उसी आत्मीयता से सुनती हो मुझे। बस वही मेरा एक तरफा प्रेम, पूर्ण होता है।
इंतजार, फिर तुम से प्यार 'सांझ' मेरा तुम से इजहार, तुम्हारा पहले न फिर इकरार, कभी कभी हमारी तकरार, सबकी रजामंदी, तुम्हारी मुझ पर पाबंदी, कभी नाराजगी कभी हदबंदी, ....
There are tons of things that I should have told you ( before your marriage)Now, I don't only realise what you are but also I'm exhausted in words to express myself (that's why I'm writing this ).
बहती हवा का वेग, जब अधखुली खिड़की से होता हुआ, जब शोर उत्पन करता है। तो मानो ऐसा लगता है जैसे, एक मौन अधर मनुष्य, पथ पर आई रुकावट से टकराकर चीख रहा हो......