अब शाम हो या धूप हो, तुम ही तुम महसूस हो ! तुझे देख लूं या सोच लूं, तो चैन भर के मैं रो सकूं! बस प्यार हो तो के इस तरह, के मौत हो तो करार हो! मेरे इश्क का ये खुमार हो!!
ज़िंदगी के अंधेरे गलियारों से, जब गुजरता हूँ मैं ! अपने सपनों के महल, ढूँढ ही नहीं पाता हूँ मैं !! एक कहानी जो गुम हो गयी, मेरी नस नस में ! उसे आज भी, क्यूँ नहीं, भूल पाता हूँ मैं !!
खो कर फिर से पाने की चाह, बनी क्यूँ रहती है! ये साजिश कायनात की, लगी क्यूँ रहती है!! अपने ही शब्दों के जाल में, फस गया हूँ मैं! तेरी यादों के पन्नों से, ये अलमारी, भरी क्यूँ रहती है!!