पता नहीं मैं बेवजह क्यों प्यार किया करती हूँ?
पता नहीं मैं बेवजह क्यों प्यार किया करती हूँ?
हर कुछ देकर मौन रुदन का, क्यों व्यापार किया करती हूँ?
भूल सकूं दिल की आघाते, खुद की जहाँ में खो कर ही,
जीवन के गम को भुला डालूं, अपनी नयनों से रोकर ही,
इसलिए तो अपनी अरमानों को मैं, अक्सर भुला दिया करती हूँ,
पता नहीं मैं बेवजह क्यों प्यार किया करती हूं?
कहती जग पागल सी मुझसे,पर मुझे पागलपन भी बहुत प्यारा है,
नम आँखें हैं मेरी मदिरा, आंखों की ज्वाला है मधुशाला
इसलिए जग की मधुशाला को, मैं हर वक्त झेल लिया करती हूँ,
पता नहीं मैं बेवजह क्यों प्यार किया करती हूँ?
कर ले जग मुझसे अपने मन की, पर मैं अपनेपन की दीवानी हूँ,
चिंता नहीं दुखों की करती, मैं खुद में जलने वाली परवानी हूँ,
पता नहीं मैं बेवजह क्यों प्यार किया करती हूँ?
किसी गैर के बंधन में बंधकर, कुछ पल जीवन की सुख पा लूं
और ना उन्हें परेशान करूं मैं, उनके हिस्सों की प्यार दे पाऊं
इसीलिए तो उस अनोखे बंधनों की,मैं दिल से सत्कार किया करती हूँ,
पता नहीं मैं क्यों बेवजह क्यूं प्यार किया करती हूँ?
-