आजतक जितने भी लोगों से मिली, कभी कुछ छूट जाने का डर नहीं लगा. मिलना इत्तफाक तो नहीं था, दो परिवारों की मंजूरी रही,जो रस्मे मुझे मिल कर निभाना था. असमंजस मे गुजरी वो सुबह, आखिर क्या ही बात चित होगी. तब तलक मे मैसेज आया, जिसमें वेन्यू का पता लिखा था. मैं कभी ओके नहीं लिखती, मुझे लगता है, "ओके का जिक्र शब्दों की कमी है". पर इसबार ओके मुनासिब लगा. इतने रंगीन मिजाज कैफेटेरिया मे, एक बंदा फॉर्मल कपडों मे था. वो दूर से ही भीड़ से अलग था, झट से हैलो हाइ नजरों के इशारों से हुई. तब तक वेटर आके अपना पैतरा जमा लिए. बातों की शुरूवात धीमी रही, पर बाते जारी रही. हमने कहानी, उपन्यास, पालिटिक्स, यूपीएससी, एथिक्स हर किस्म के बात किए सिवाए मुद्दे के. खाना खत्म होते ही, हम अपने अपने रास्ते जाना था. उसने पूछा कुछ छुटा है, मैंने झट से कहा 'चाय'. और उसकी वो मुस्कान, जो शायद कह रहा हो, चाय से हमारी भी पुरानी यारी है. ✍️🙆
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