*अतुलनीय पिता*
पापा क्यों गए तुम छोड़ के,
हमसे मुंह यूं मोड़ के।
याद तुम्हारी आती है,
आंखें नम हो जाती है।
मिला जो प्यार, सबसे प्रिय है।
किया जो, वह अतुलनीय है।
सहे तुमने बहुत से दुख हैं,
हमें दिया केवल सुख है।
हैसियत से बढ़कर किया है तुमने,
हर ज़िद्द को हमारी सहा है तुमने।
क्या-क्या परेशानियां नहीं उठाई हैं,
बहुत-सी ठोकरें खाईं है।
मिला न कभी जीवन में सुख,
न चंद लम्हें ऐशो-आराम में बिताई हैं।।
एक कसक रह-रहकर उठती,
तुम्हारे लिए, तुम्हारी यह बेटी कुछ भी कर न पाईं है।।
*आपकी रूमू*
-