तुम और तुम्हारा लिखना
तुम दुःख के बारे में लिखते हो,
तुम संघर्ष की बात करते हो,
तुम रहते हो महलों में और...
तंग हालात के मुद्दे छेड़ते हो।
ज़रा बताओगे और कितना नक़ाब पहनोगे,
बस कुछ भी लिख जाने के लिए,
तुमने तो कभी कुछ खोया ही नही,
क्या पहचानोगे कि तड़प होती क्या है कुछ पाने के लिए।
छटपटाहट, कमी और गरीबी से कोई पाला नही,
फिर कैसे पता कि ये रात है कोई उजाला नही,
महसूस करना होता है जनाब तुम तो बस शब्दों की बौछार करते हो,
तुम्हारा लिखना बस ऐसा है जैसे तुम ठन्डे कमरे में होकर गरमी की बात करते हो।
मुझे चुभते हैं ये झूठे शब्द, झूठे अनुभव और ये झूठी झलक,
कदम कभी रहते नही ज़मीं पर तुम तो रहते हो आसमां तलक,
कभी मिट्टी छुई नही और फसल उगाने की फरियाद करते हो,
ज़मीं पर पैर रखा नही कभी और खुरदुरेपन का बखान करते हो।
तुम्हे लगता नही कि तुम्हारा कुछ कहना बेकार है,
ग़म नही तुम्हारे पास तुम्हारा दिल खुशियों से आबाद है,
फिर क्यों जब गिन नही सकते कुछ तो बेमतलब हिसाब करते हो,
कुछ खोने जैसा जब डर नही तो फिर क्यों कुछ खोने से डरते हो।
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