क्या थी मेरी गलती, एक पुष्प बन खिल भी न सकी
थे अरमान लाखों दिल में, एक कली पे ही तोड़ दी गई
अभी तो मुझे खिलना था, मैं किन जिम्मेदारियों तले दबा दी गई
अभी तो खुद के लिए जीना था, ये मैं कहाँ आ गयी
माली की क्या मजबूरी थी, कली बनने पर ही इतनी चिन्ता हो गई
कभी स्वीकार्य नहीं था, कली पर ही तोड़ी जाऊ
टूटना तो था ही, काश! पुष्प बन एक बार तो खिली होती ।।
एक प्रश्न मन में उठता, मेरी क्या गलती थी की खिल भी न पाई
अपनी समझ से पुष्प समझा, इतने भी नासमझ कैसे हो गए
इतनी जल्दी दूर कर दिए, ऐसी भी क्या मजबूरी थी
क्या मेरे सपने बड़े थे, या फिर तुम्हें समाज द्वारा तोड़े जाने का डर था
ऐसे कितने प्रश्नों को सुनाउ, क्या कभी खुद अफ़सोस नही हुआ ।।
बहुत ख़ुश हूँ, कली होते हुए भी पुष्प जैसे रही
कुछ न पता था , सब कुछ जान गई
बहुत खुश हूँ, आँशु होते हुए भी मुस्कुराना सिख गयी
जो सपनें देखती थी, वो सच में सपने ही रह गए
बहुत ख़ुश हूँ, ऐसी क़िस्मत पाने के लिए
बहुत जलन हैं औरों से, इतनी अच्छी क़िस्मत किसी को न मिले
बहुत ख़ुश हूँ, ख़ुश बोलके दुःखों को बताते हुए
बाहर से मुस्कुराते हुए, अंदर से घुटन जैसे जीते हुए
बहुत ख़ुश हूँ, यह सोचते हुए
आखिर क्या थी मेरी गलती, एक पुष्प बन खिल भी न सकी ।।
-