तुम चारदीवारी में बंद होते हो और मैं अक्सर करीब आकर तुम्हे छूने को तरसता हूँ कभी गौर से देखना इस गर्दिश में वो मैं ही हूँ जो तुमपर बादल बनकर बरसता हूं...
ऐ राही न पूछ तू मुझसे की मेरी कहानी क्या है? क्यूंकि तेरे इस सवाल पे मैं खामोश पड़ जाऊंगा. जो पूछेगा किस्से ,तो बताने को ढेरों हैं मेरे पास.. पर तुझे वो दास्ताँ कैसे सुना दूँ जिसे मैं आज भी जी रहा हूँ...
जिस दास्तान का अंत ही नहीं वैसी दास्तां तुम सुनना पसंद करोगे?? मेरे किस्सो में तुमने मुझे जीतते हुए देखा है मेरी दास्तान में मेरी हार सुन सकोगे? जो कह दूँ कि अगर बुलंदियाँ है मुझमे. पर इससे पहले मुश्किलों से डरा भी हूँ की ज़िंदा हूँ मैं आज इस दिन के उजाले में अगर तो अंधेरों में हज़ारों बार मरा भी हूँ... जिस दास्तान को अभी मैं खुद नहीं सुलझा पाया उस उलझन में बंधना पसंद करोगे? जिस दास्तान का अंत ही नहीं वैसी दास्तां तुम सुनना पसंद करोगे?
जो सुन्नी हो पूरी दास्तां तो आ जाना जब आखरी सांसें बची हो मेरी तब शायद शरीर ठंडा पड़ जाए और तुम्हे लगे शायद मेरी रूह बेजान है.. उस वक़्त मेरी मुस्कान देखना तुम.. शायद वो बता दे कि मेरी क्या दास्तान है.....