rohit patidar   (Roit Patidar)
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Joined 5 June 2019


Joined 5 June 2019
21 JUN 2020 AT 7:33

रिश्तो की भुल-भुलैया में अटक सा जाता है
चाहते अपनों की पूरी करने में भटक सा जाता है
पाल-पोस कर वजूद देता, हिस्सेदार अपना बनाता है
दर्जा मिला है उसे आकाश का,भला उस पिता को कौन समझ पाता हैं।

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20 APR 2020 AT 15:23

सोच तेरी प्यारी सूरत यूँ बार बार इठलाऊँ
तू कहे तो ले बाँसुरी पनघट पर श्याम बन जाऊँ।

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16 APR 2020 AT 19:21

पगली सी है वो मुझे बहुत परेशान करती है
बोलती है निगाहों से और इशारों में बात करती है।

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8 APR 2020 AT 15:13

विनम्र स्वभाव कंचन काया
जाके अंग अंग राम समाया...

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2 APR 2020 AT 17:55

मर्यादा की तुम अतुलित परिभाषा
नमन स्वीकार कौशलपुर राजा

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15 SEP 2019 AT 22:37

तुम गले लगकर
धड़कनों को एहसास तो करवाओ
ये आंखों से बयां न कर दें
तो कहना...!!!

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9 JUN 2021 AT 20:38

किसी की उम्मीद को तार-तार कर जाते है
अपने मतलब के साथ लोगो के मतलब बदल जाते हैं।
बातें करते है उनके प्यार की बड़ी-बड़ी,
किसी के घर की इज्ज़त को महफिलों में बदनाम करते जाते हैं।।

Rohit patidar

इन्तेजार का दामन थाम, शाम का कतरा-कतरा बिखर जाता हैं।
यादों की गहराइयों को टटोल कर, मन फिर से उन बातों में उलझ जाता हैं।
जिंदगी की गलतियों, मजबूरियों का वो हिस्सा पन्ने-दर-पन्ने याद आता है।
वो शाम का एक अकेलापल हर शाम रात होने तक मेरे साथ ही बैठ जाता हैं।।

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15 MAY 2021 AT 17:05

एक दिन मेरी मौत पर कुछ लोग रोयेंगे।
कुछ बोल देंगे अच्छाइयाँ मेरी तो कुछ मेरी बुराइयों का रोना रोयेंगे।
क्या खोया है मेरे अपनो ने इसे छोड़कर, मैं क्या-क्या दे गया हूँ इस बात पर बातें बनायेंगे।
मेरे हालतों, जज्बातों को जानें बिना मेरी कमियों की बातों में खोयेंगे।
जब उठाएंगे ये अर्थी मेरी, मातम का दुःख भूल कर मेरा वजन कितना है इन बातों में खोयेंगे।
चिता मेरी शांत भी ना होगी, ये कर्म-काण्ड और नियमों की बातें कर मेरी अस्थियाँ घाट-घाट में डुबोयेंगे।
ये लोग ही तो है जो मेरे जिंदा रहने पर मेरे नहीं हो सके, तो मरने के बाद मेरे क्यों होयेंगे।।

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7 JUN 2020 AT 9:36

वफाये थी तो किस्से, शेरो शायरियाँ बन रहे थे
रूख बदला इश्क़ ने बाजी हारी गई तो
बे-वफा लिख उनके इस्तेहार बाजारों में दिख रहे थे।

Roit patidar

जिन्दगी की किताब मे किस्से हजार है
लम्हो में जीना इसे, ये बेहद शानदार है
हर सफर में हमसफर की चाहत भी बेकार है
गलतियों से सीखना, यहाँ सीखाने वालो की भरमार है
कोई हमेशा नही रहेगा ये सब वक्त की दरकार है
महज चार दिन की जिंदगानी है बेटे यहाँ तुझे भी निभाना एक किरदार हैं।

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31 MAY 2020 AT 11:55

मैं देख रहा था उसे, उसका हाथ चल रहा था
लड़खड़ाती हुई कलम से शायद कोई लम्हा बुन रहा था
इच्छाएं मेरी भी मचल रही थी, में जान कर हैरान था
उस वृद्धाश्रम के बूढ़े का लिखा हुआ अंतिम खत भी उसके बेटे के ही नाम था।

Roit patidar

आज कल उनकी यादों का बे-वक्त आना जाना लगा रहता है
कहे कोई उनसे, ये बदनाम आवारों का ठिकाना माना जाता हैं।

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