अंतिम यात्रा....
मैं नींद में था और मुझे इतना सजाया जा रहा था,
बड़े प्यार से मुझे नहलाया जा रहा था.
न जाने था कौन सा वह अजब खेल मेरे घर में,
बच्चों की तरह मुझे कंधे पर उठाया जा रहा था.
था पास मेरा हर कोई अपना उस वक्त,
फिर भी मैं हर किसी के मन से भूलाया जा रहा था.
जो कभी देखते भी न थे मोहब्बत की निगाहों से,
उनके दिलों से भी प्यार मुझपर लुटाया जा रहा था.
मालूम नहीं क्यों हैरान था हर कोई मुझे सोता हुआ देखकर,
जोर-जोर से रोकर मुझे जगाया जा रहा था.
कांप उठी मेरी रूह वो मंज़र देखकर,
जहां मुझे हमेशा के लिए सुलाया जा रहा था.
मोहब्बत की इंतहा थी जिन दिलों में मेरे लिए,
उन्हीं दिलों के हाथों आज जलाया जा रहा था.
इस दुनिया में कोई किसी का हमदर्द नहीं होता.
लाश को शमशान में रखकर अपने लोग ही पूछते है,
'और कितना वक्त लगेगा?'
-Rohit kalal
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