Rohan Singh   (©Rohan सिंह)
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Joined 29 July 2019


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Joined 29 July 2019
10 NOV 2019 AT 0:37

हमारी ज़िंदगी में, इश्क़ का अध्याय काफ़ी छोटा था,
याद है वो मंज़र हमें , जिस रोज़ यह दिल भी टूटा था ।

पहली दफ़ा, उसे भीगे भीगे बालों को संवारते देखा था,
बस स्टेशन पे खड़े, उसे लम्हों को रोकते देखा था ।

हर रोज़ अब उसी जगह, उसका इंतेज़ार होने लगा,
शायद मुझे भी उन दिनो, थोड़ा थोड़ा प्यार होने लगा ।

महीने बीत गए, उससे हम बस यूँ ही देखता रहे,
उसे मुस्कुराते देख, हम भी ख़ुश होते रहे ।

बड़ी हिम्मत जुटा के, fb पे उससे Hi भेज ही दिया,
सोचा था जो, उसने औरों से परे जवाब भी दिया ।

फिर थोड़ी इधर उधर की बातें, थोड़ी उसकी अदाओं का वर्णन किया
कुछ देर बाद, क्या बातें करें सोच.. बात ही नहीं किया ।

अक्सर हमारी बातें सुन, हँस दिया करती थी वो,
कंधे पे हाथ रख, “तुम बहुत अच्छे दोस्त हो” कह देती थी वो।

बीच बीच में कुछ, यूँ सालो भर बात होती रही,
चाहने लगा था उसे, और वो अब सिर्फ़ दोस्त ना रही ।

पर उसके लिए तो आज भी हम, वही अच्छे दोस्त थे,
To be continued...

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20 JAN 2022 AT 1:03

ख्वाइशों के माकम बने हुए से हैं, वही
एक मकबरा कही मेरा भी तो दफ़न हो रहा ,
किस छोड़ की तलाश करे जो है अब और
किस ओर यह मेरा दिल ठहर रहा

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26 NOV 2021 AT 8:12

तवाजूं हैं यह जिंदगी की,
ख्वाईशें तो हज़ार ही होंगी,
पाना बहुत कुछ बाकी अभी के मुकाम पे,
चाहतें पूरी सब, अब तेरे बाद ही होंगी ।

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15 NOV 2021 AT 0:56

ना रहा वो चाँद वही, ना रही अब बातें वही,
ना रहेंगे अब सारे वही अपने जज़्बात अभी,
की सीधी डगर के उलझे क़िस्से हैं हम,
जो बिखर भी गए, तो सवार हम बदलेंगे नहीं ॥

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24 OCT 2021 AT 10:24

उनकी सादगी से आते हैं वोही पुराने ख्याल सभी,
जरूरी भी हैं , की बदले यह मन के जज़्बात यूंही,
इंतजार करना भी कैसा यह दस्तूर बना लिया,
की जलते अश्कों से पूछे हैं और ऐसे सवाल कई।

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16 OCT 2021 AT 20:29

कुछ कहना भी है और कुछ कहूं भी नही
कुछ छुपा भी लिया, और कुछ बचा भी नही,
तुम मेरे हो, और मेरे जैसे ही
दूर तुमसे हूं पर क्यों तुम्हें भुला नहीं ।।

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10 OCT 2021 AT 15:08

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9 OCT 2021 AT 0:39

सम्पूर्ण की तलाश करे, ज़माने में कई,
अपनी ख़ामियाँ कहाँ ही तुम देखोगे,
साथ छोड़ देने का रिवाज़ यहाँ,
तुम बताओ, तुम कहा तक चलोगे ॥

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3 OCT 2021 AT 21:33

ज़िंदगी के मुक़ाम कई मिले हैं.
पीछे मुड़ कभी देखा क्यूँ नहीं,
कुछ पल साथ चले तो हैं,
पर लगे जैसे हम कभी मिले नहीं,

हासिल हुआ सब , पर कुछ बाक़ी लगे हैं,
इम्तिहान देने का दर क्यूँ तुझको अब नहीं हैं,
की पार किए हैं दरियाँ इतने,
की रुसवा हुए कई , और कोई वज़ह नहीं हैं॥

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29 SEP 2021 AT 21:05

क़त्ल भी गर कर दो तुम,
दिल से उफ़्फ़ तक ना निकलेगी,
बड़े ज़ालिम है हसीन तेरी निगाहें,
जान लिए बिना कहाँ यह ठहरेगी ॥

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