मैं स्वीकारती हूँ तुम्हें जैसे रात्री स्वीकारती है चंद्रमा को सहर्ष, अपनी बाहें फैलाकर और भरते हो तुम मद्धम शीतल सा प्रकाश मेरे जीवन में जैसे रात्री की कालीख मिटा देता है चाँद अपनी स्वेत प्रकाश तरंगो से ll
सुनो जब सुलझाना अपने बालों को तो देखना मेरा वो प्रेम जो अटका है तुम्हारी उलझी सी लटों में कहीं गिर न जाए सुनो... उतार लेना तुम उसे और सहेज लेना अपने ह्रदय के किसी कोने मेंll
हे ईश्वर तुम उस धरती पर फिर कभी नही पुत्री देना कर देना बंजर तुम समस्त भूमि फिर वहाँ नही उपवन देना बिलख बिलख कर मृत्यु को प्राप्त वही प्राणी होगा जिसने फिर अब नारी की मर्यादा को छीना होगा ll
सुनो उस रात तुम्हें सुकून से सोता हुआ पा कर दूज के चाँद को देख मैने भी थामा था तुम्हारा हाथ और तुम्हारे कानों के समीप आकर मैने कहा था मुझे भी प्रेम है तुमसे ll