जिन जख्मों पे तूने मलहम लगाया हैंआज फिर उन्ही जख्मों की शुरुआत हो गईं ।।उस रात तूने मुझसे झूठ कहा और उस रात ही हमदोनो की आखिरी बात हो गईं ।।ना जाने कितने सपने सजा रक्खे थे मैंने तेरेसाथऔर जब आंखें खुली तो तू किसी और के साथ हो गईं ।। -
जिन जख्मों पे तूने मलहम लगाया हैंआज फिर उन्ही जख्मों की शुरुआत हो गईं ।।उस रात तूने मुझसे झूठ कहा और उस रात ही हमदोनो की आखिरी बात हो गईं ।।ना जाने कितने सपने सजा रक्खे थे मैंने तेरेसाथऔर जब आंखें खुली तो तू किसी और के साथ हो गईं ।।
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जिस चौराहे पर अपने प्यार का इज़हार किया थाउसी चौराहे पर अब तेरा इंतज़ार कर रहा हु ।।जो रातें कभी हम दोनो की बेतुकी बातों में गुज़र जाती थीआज उन्ही रातों में उन बातों को याद कर रहा हु ।।और तेरे प्यार का बुखार मुझपे इस कदर छाया हैंकी कभी तो तू मेरी बाहों में होगी बस इसी ख्वाब मे , मैं तूझसे आज भी बेशुमार प्यार कर रहा हु ।।ऋतुराज ♛ -
जिस चौराहे पर अपने प्यार का इज़हार किया थाउसी चौराहे पर अब तेरा इंतज़ार कर रहा हु ।।जो रातें कभी हम दोनो की बेतुकी बातों में गुज़र जाती थीआज उन्ही रातों में उन बातों को याद कर रहा हु ।।और तेरे प्यार का बुखार मुझपे इस कदर छाया हैंकी कभी तो तू मेरी बाहों में होगी बस इसी ख्वाब मे , मैं तूझसे आज भी बेशुमार प्यार कर रहा हु ।।ऋतुराज ♛
आने वाले साल में खुद को ज़रा बदलने का इरादा कर रहा हुअब दूसरो से नहीं खुद से प्यार थोड़ा ज्यादा कर रहा हु ।।किसी रोज़ मेरी याद तो आएगी तुझे उस वक्त तेरीआंखों में बस आसू होंगे तुझसे मैं ये वादा कर रहा हु ।। -
आने वाले साल में खुद को ज़रा बदलने का इरादा कर रहा हुअब दूसरो से नहीं खुद से प्यार थोड़ा ज्यादा कर रहा हु ।।किसी रोज़ मेरी याद तो आएगी तुझे उस वक्त तेरीआंखों में बस आसू होंगे तुझसे मैं ये वादा कर रहा हु ।।
काफी दिनों बाद ये कलम उठा रहा हु तू काफी दूर हैं न मुझसे , बस साथ बिताए उन लम्हों को पन्नो पे पिरो रहा हु ।।जीने की चाहत और लिखने की तमन्ना दोनो को काफी पीछे छोड़ आया हु मैंबस उन आदतों को फिरसे अपना रहा हु ।। -
काफी दिनों बाद ये कलम उठा रहा हु तू काफी दूर हैं न मुझसे , बस साथ बिताए उन लम्हों को पन्नो पे पिरो रहा हु ।।जीने की चाहत और लिखने की तमन्ना दोनो को काफी पीछे छोड़ आया हु मैंबस उन आदतों को फिरसे अपना रहा हु ।।
मैं बैठा हु खामोश मगर मन में चल रही हैंबस वो लाख बातें तुम्हारी ।।चाय के कुल्हड़ को लगा रहा हु होटों सेऔर पता नहीं क्यों आरही है बस यादें तुम्हारी ।। -
मैं बैठा हु खामोश मगर मन में चल रही हैंबस वो लाख बातें तुम्हारी ।।चाय के कुल्हड़ को लगा रहा हु होटों सेऔर पता नहीं क्यों आरही है बस यादें तुम्हारी ।।
लोग समझते हैं रिश्तों की गहराइयों के लिए हर रोज़ बातें ज़रूरी हैं ।।रिश्ते जो बन चुके हैं , वो टूटे ना लोग समझते है इसके लिए हर शाम मुलाकातें ज़रूरी हैं ।।रिश्ते कोई पौधा नहीं जिसे हर रोज़ पानी की ज़रूरत हो चाहने वाले के चाहत में अगर कमी ना हो नातो उस रिश्ते के लिए बस यादें काफ़ी हैं ।। - ऋतुराज ♛ -
लोग समझते हैं रिश्तों की गहराइयों के लिए हर रोज़ बातें ज़रूरी हैं ।।रिश्ते जो बन चुके हैं , वो टूटे ना लोग समझते है इसके लिए हर शाम मुलाकातें ज़रूरी हैं ।।रिश्ते कोई पौधा नहीं जिसे हर रोज़ पानी की ज़रूरत हो चाहने वाले के चाहत में अगर कमी ना हो नातो उस रिश्ते के लिए बस यादें काफ़ी हैं ।। - ऋतुराज ♛
मोहब्बत को लेकर मेरे पेहलू अलग थेमैं कुछ और ही सोचता था ।।लोग जीने मरने की कसमें खाया करते थेऔर मैं उन्हें पागल समझता था ।।मोहब्बत मैं भी तुमसे बेहद करता हु बस इज़हार करने मे घबराता था ।।तुम्हे पाने की चाहत काफी दिनों से थीबस मैं कुछ बातो को दौहराना नहीं चाहता था ।। -
मोहब्बत को लेकर मेरे पेहलू अलग थेमैं कुछ और ही सोचता था ।।लोग जीने मरने की कसमें खाया करते थेऔर मैं उन्हें पागल समझता था ।।मोहब्बत मैं भी तुमसे बेहद करता हु बस इज़हार करने मे घबराता था ।।तुम्हे पाने की चाहत काफी दिनों से थीबस मैं कुछ बातो को दौहराना नहीं चाहता था ।।
जब चाहु तब तुमसे मिल नहीं सकता मगर तुम्हे याद तो कर सकता हु ।।इतने नज़दीक होकर भी काफी फाजलें हैंखुदा से एक फरियाद तो कर सकता हु ।।और अगर बात हो तुम्हारी खूबसूरती पे तो सच मानो मैं तुम्हारी खूबसूरती पे पूरी एक किताब लिख सकता हु ।। -
जब चाहु तब तुमसे मिल नहीं सकता मगर तुम्हे याद तो कर सकता हु ।।इतने नज़दीक होकर भी काफी फाजलें हैंखुदा से एक फरियाद तो कर सकता हु ।।और अगर बात हो तुम्हारी खूबसूरती पे तो सच मानो मैं तुम्हारी खूबसूरती पे पूरी एक किताब लिख सकता हु ।।
मैं बस चाहता हु काश एक शाम ऐसी होजब तुम मेरेसाथ नहीं मेरेपास हो ।।मैं अपने जज्बातों को बया करूऔर मेरे हाथो बस में तुम्हारा हाथ हो ।।रोज़ की उलझनों में पूरा दिन निकल जाता हैंकभी मैं तुम्मे उलझ जाऊ काश एक ऐसी रात हो ।। -
मैं बस चाहता हु काश एक शाम ऐसी होजब तुम मेरेसाथ नहीं मेरेपास हो ।।मैं अपने जज्बातों को बया करूऔर मेरे हाथो बस में तुम्हारा हाथ हो ।।रोज़ की उलझनों में पूरा दिन निकल जाता हैंकभी मैं तुम्मे उलझ जाऊ काश एक ऐसी रात हो ।।
हद से ज्यादा उम्मीद करने पे तकलीफ होना तो लाज़मी हैं ।।तुमहे मुझसे बेहद इश्क हैंशायद ये मेरी गलतफयमी हैं ।।मैं तुम्हारा इंतजार करू और तुमखुद की महफिल में मशगूल रहो ये तो खुदगर्जी हैं ।। -
हद से ज्यादा उम्मीद करने पे तकलीफ होना तो लाज़मी हैं ।।तुमहे मुझसे बेहद इश्क हैंशायद ये मेरी गलतफयमी हैं ।।मैं तुम्हारा इंतजार करू और तुमखुद की महफिल में मशगूल रहो ये तो खुदगर्जी हैं ।।