RITU Srivastava   (ऋत्विजा)
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Joined 19 May 2020


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Joined 19 May 2020
25 APR AT 10:43

चाहती हूँ उन्हें मैं जी जान से, अपने प्यार पर कोई शक नही
हूँ मैं अपनी सारी सौतानो से परेशान ,इसमें भी कोई शक नही

बांधे रहती हूँ हमेशा पल्लू से अपने ,इसमें तो कोई शक नही
ढील देती हूँ पल्लू को जरा, बहकेंगे कदम इसमें कोई शक नही

उनके दिल में, मुझ से चाहत है बेमिसाल , इसमें कोई शक नही
है मलाल मुझे,गीतों में लेता है उसका नाम ,इसमें कोई शक नही

हूँ गुरूर उनका, मेरी हँसी से उनकी खुशी, इसमें कोई शक नहीं,
पर उनको हंसाने की करे तमाम तरकीबे ,इसमें कोई शक नही

असंभव कहीं और जाएं, नही कोई खेल , इसमें कोई शक नही
करे हर जतन दूर से दर्शन हो जाए उनके, इसमें कोई शक नही

चलते है ,बन हमसफर जीवन की राह पर , इसमें कोई शक नही
देख उन्हे राह पर ठिठकते है उनके कदम , इसमें कोई शक नही

देते रहते साड़ियां, गहने, उपहार अकसर ,इसमें कोई शक नही
साड़ी और गहने में सजी उनकी फोटो मांगे ,इसमें कोई शक नही

बैंक एकाउंट, जमीन जायदाद, अर्पण मुझे ,इसमें कोई शक नही
मोबाइल पासवर्ड में उसके बर्थडे की तारीख ,इसमें कोई शक नही

दिखूं घरेलू, धार्मिक, अबला मीना कुमारी सी,इसमें कोई शक नही
उनकी चंचल आंखे ढूंढे ,सनी लियोन उसमे, इसमें कोई शक नही

रखे थे मैने सोलह सोमवार पाने को उनको, इसमें कोई शक नही
पीछा छूटे सौतन के झमेले से,रखूंगी उपवास इसमें कोई शक नही
ऋत्विज़ा

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16 APR AT 21:41

संतृप्त मन है मेरा,किसी और के आने की, कोई
सम्भाविता कहाँ
तेरे प्रेम पराग अमृत से भरा हुआ है,सम्पूर्ण ह्रदय का
प्याला
कुछ और भरने की गुंजाइश कहाँ

प्रेम नीरनिधि की गहरी चंचल लहरों में डूबी मैं,अब
किनारा कहाँ
बांध लिया है प्रेम के बन्धन से मेरे समग्र अस्तित्व को
तुमने
किसी और रिश्ते की गुंजाइश कहाँ

अरुण किरण-सी चारों ओर ज्योति प्रेम की , अब
अंधियारा कहाँ
रोम रोम मेरा जुगनू सा चमकता मन रहता आनंद-विभोर
जीवन में तमस की गुंजाइश कहाँ

आलोक तुम, मैं अवनी करती ग्रहकक्षा में भ्रमण, अब
विचलन कहाँ
आकर्षक और आनंददायक प्रणय गुरुत्वाकर्षण से बंधे
हुए हम दोनों
अब इस बन्धन की काट की गुंजाइश कहाँ

केंद्रीभूत हुई मैं तेरी,केवल सुख ही सुख संग्रह हुआ,
कल्पित दुख भी कहाँ
प्रियतम, मेरे जीवन में तुम आए सब सार्थक,सम्पूर्ण और
पूरक हुआ
जीवन में अपूर्णता की गुंजाइश कहाँ
ऋत्विज़ा

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26 MAR AT 15:56

तस्वीर में ही सही तेरी मिलियन डॉलर मुस्कान अच्छी लगी
जिस पल तुझ से, नजरों से नजरे मिली ,वो घड़ी अच्छी लगी

जब दुनिया के सामने उदघोष किया जो तुमने ` तुम हो मेरे `
मेरे कानो को तेरे स्वर की ध्वनि की तरंगे कर्णप्रिय सी लगी

तेरे पारदर्शी प्रिज्म मन से ,जब मेरे भावों को अपवर्तन मिला
श्वेत सी मेरी जिंदगी सतरंगी हुई, ये प्रेम इंद्रधनुष अच्छा लगा

पूछते हैं लोग मुझसे , उसमें क्या कुछ ऐसा ख़ास तुमको लगा
बेझिझक कहा,पाखंडी जग में तेरा बेबाक अंदाज़ अच्छा लगा

तेरे लिखे पत्रों में अलंकृत शब्दों में अपने लिए प्यारे से संबोधन
कँपकँपाती उंगली से ख़त में "सिर्फ़ तुम्हारा" पढ़ना अच्छा लगा

मत देखो आईना ,मेरी आंखों में देख करो सोलह श्रृंगार तुम
हर बार सोलह श्रृंगार में, तेरा पायल पहनाना मुझे अच्छा लगा

यक्ष सा प्रश्न पूछती हूँ मैं तुझ से ,मिले क्यों अंतिम मोड़ पर तुम
ज़िंदगी अब कटेगी तेरे संग, रोमांचित हो जीना मुझे अच्छा लगा

है सम्राट वो अपनी कला की दुनियां में ,अनभिज्ञ कोई भी नही
तेरी अद्भुत कलाकृतियों में, छिपा वो मेरा नाम मुझे अच्छा लगा

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17 MAR AT 16:18

रचना को अनुशीर्षक
में पढ़े

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6 MAR AT 10:43

है उपजा हम दोनो के बीच, सहज सरल सुंदर प्रेम
सरल प्रेम की सुंदरता, भूषण इसका देखो पवित्र प्रेम



मिलन की तुम से आकांक्षा,उर में सहज, हीय में आतुरता
छिपी मर्म-सी स्पृहा ,अधीर मन में मिलन की उत्सुकता



ओठों पर आह्लाद की दृढ़ता,पलकों में मिलन के स्वप्न
सांसों के उद्वेलित स्वर, अलको में छाए मधुमास के चिन्ह



रूह में प्रेम की छटा,चित्त में बसन्त में छाया राग हिंडोल,
मिलन की आस में तरसते तन-मन, दूर कब होगा वियोग



तुम अगर कर दो प्रेम का इज़हार, हो जाए मन खुशहाल।
ना छुपे ऋत्विज़ा के प्यार की खुशबु ,जग में हो जाए ऐलान

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6 MAR AT 8:49

Hii

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17 FEB AT 8:29

जलज हो चंद्रमा से शीतल,
मनमोहक चाँद बन अपनो के जीवन में सजते रहो
पंकज बन तुम सदा विपरीत परिस्थितियों
में सदा लालिमा लिए खिलते रहो
अम्बुज से नेत्र , ललाट पटल पर प्रकाशमय तिलक
शोभा निराली सजती रहे
शतदल से युक्त गुणों की खान से ,
तुम सदा अपने जीवन में दमकते रहो
नीरज समान मोती बन शुद्ध भावों को
ह्रदय में संकलित कर ,ग्रंथ तुम रचते रहो
इन्दीवर नीले रंग रत्न की तरह साकारात्मक उर्जा
से परिपूर्ण ओजस बन रहो
नलिन, बन तुम चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में
आत्मज्ञान को प्राप्त करो
उत्पल नील कमल बन विषम परिस्थितियों के
विष को अमृत में बदलते रहो
सरोज बन मेहनत और कोशिशों के दम पर
सफलता हासिल करते रहो
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं कमल
🪷🪷🪷🪷

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14 FEB AT 9:27

कुसुमाकर का देखो मनोहरता आगमन
नवोत्कर्ष है छाया ,बज रही है जलतरंग

बोलता है मयूर देखो ,जिया ले हिल्लोर
प्रतिध्वनि तेरे स्वर की गूंजे है चहुँ ओर

प्रणय की कलियां मुझे करती है विभोर
आ जाओ प्रियतम अब नही करो ठिठोल

ऋतु सदा ही बदलती प्रकृति तेरे लिए
पर बसंत में तो सजती है सिर्फ़ तेरे लिए

कर सोलह श्रृंगार पहन पीत ,पुष्प ,परिधान
भोली भाली सी मन की राहें भटकती आज

ऋतुराज तराशो मुझे तुम ,ऋतुपति मौसम में
तराशता है प्रतिमा को जैसे हुनरमंद शिल्पकार

प्रकृति ने लुटाया बसंतराज पर देखो अथाह प्रेम
मधुरिम क्षणों में तुम भी बरसाओ ना मुझ पर प्रेम

माधव करो अंकित प्रेममयी चुम्बन मेरे भाल पर
उस क्षण मैं दमक उठूं तेरी प्रेमिका होने के दर्प से

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8 FEB AT 9:55

दोहरी जिदंगी

दो चेहरे ,दो नाम, छुपा चेहरा ,छुपा नाम उनका
दोहरा जीवन ही बस जीना, देखो ये काम उनका

होते है वो अक्सर मानसिक बीमारी से ग्रसित
होता ना आभास इसका, उनको जरा भी तनिक

हर पल डरते है कही खुल ना जाए उनका राज
घूंघट ओढ़े झूठ का छिपा रहे वो अपना हर राज

सुकुन पाने की तलाश में ,जीते है वो दोहरी जिन्दगी
भटकते है मृगतृष्णा में ,कहां मिलती तब भी वो जिन्दगी

शायद वो खुशी के दिखावे में छिपाते है वो अपना दर्द
सच है कड़वा पर पूरी जिन्दगी उठाते ,जिंदगी का बोझ

कब तक खेलेंगे बेचारे अपनी दोहरे ज़िंदगी का खेल
कभी तो खुल जाएगी, दुनिया के सामने उनकी हर पोल

आखिर कब तक यह छल कपट ,दोहरापन दिखलाओगे
करो सच का सामना कभी तो इस भ्रम से निकल पाओगे

क्यों मानना बुरा ऐसे झूठे फरेबी लोगों की बातों का ऋतु
छिपते हैं खुद से, ओढ़े रहते है ,हर पल डर का साया

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24 JAN AT 17:38

एक परिपृच्छा तैरती हुई
मस्तिष्क में यूं घिर सी गईं

जब कोई हो अनुराग, प्रणय में ......
तो क्या सब कुछ उन्हे एक दूसरे को बताना चाहिए

जैसे........
आच्छादित नीला आकाश घिरा हुआ है बादलों से
आज शहर में मेरे हैं बहुत उल्लासित सी तरंगे

क्या ये भी......
समुद्र में आज है लहरों का अत्यधिक हिल्लोल
परिवेष्टित कर रखा मुझे तमी कालिमा अवसाद ने

आगे कैप्शन में पूरी रचना पढ़े 👇

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