मैं सरहदे यादों की नहीं बनाता
मज़हब के नाम पर किसी को नहीं भड़काता
महज़ ये जो दूरी पाल ली है ना
सुकून से
बस वही दूरी का ख्याल अब नहीं आता
मैं हूं अकेला शायद यही समझ में नही आता
ये युग और परंपराओं से बाहर भी देखो कभी
मैं नितांत अकेला था और खुद को अकेले पाता
मैं सरहदे यादों की नहीं बनाता
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