ये समुंदर की लहरे हैं, ये लहरों की समुंदर हैं हवाओ संग ये बहती हैं, हवाएं इनके साथ झूमती हैं, कभी सूरज डुबता हैं, तो कभी चाँद उभरता है, ये सूरज को सुलाती हैं ये सूरज को जगाती हैं ये समुंदर की लहरे हैं ये लहरों की समुंदर हैं।
भारत विजयी विश्व पताका आज हम लहराएंगे, हुए वीर शहीदो के नाम का तिलक आज हम लगाएंगे, हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई हम सब मिल एक नई ऊर्जा का आह्वाहन करेंगे, विकासशील से विकसित तक का सफर हम तय कराएंगे, भारत विजयी विश्व पताका आज हम लहराएंगे।। लिया जन्म जहा उसके लिए कुछ कर हम दिखाएंगे, दिया जन्म जिसने उसके लिए मर मिट जाएंगे, यह धरती है वीर जवानों की ये बात हम दुनिया को बतलाएंगे, लेके तिरंगा कंधे पे, उस नीले गगन को चूम जायेंगे, भारत विजयी विश्व पताका आज हम लहराएंगे।।
कल रात को कैलेंडर देख कर सोया था, सुबह माह नवंबर सोच कर धूप लेने निकल गया, पहाड़ों में सर्दी गुमनाम होती नजर आई, हवाओं में ठंडेपन का अभाव होता महसूस हुआ, माह नवंबर का और एहसास जून का हुआ, चलो, तुम्हें अपने गाँव का सैर कराते हैं, मेरे गाँव में अब सूरज बादलो के साथ खेल रहा होगा, धूप रोशनदान को चिढ़ा रहा होगा, ठंडी हवाएँ अब खूब इतरा रही होंगी, हर घर में लाईया और लड्डू चल रही होंगी, जगह-जगह आलाव की लौ अब भी जल रही होगी, माह नवंबर का सबको ठिठुरा रही होगी।
सूरज वही चांद वही, दिन वही रात वही, भुख वही प्यास वही, हम नई नई ख्वाब बुनते रहे हम खुद को बहलाने के नए- नए बहाने ढूंढते रहे।। आंखे वही नजरें वही, नियत वही, निगाहे वही, हम नजारे बदलते रहे, आवाज वही बाते वही, हम नए नए दोस्त बनाते रहे, हम वही हमारे वही, हम नए फर्श और नए-नए छत बनाते रहे, खुद को बहलाने के नए नए बहाने ढूंढते रहे।
तेरे करतूतो से पुरी इंसानियत शर्मसार होती नजर आ रही है, ऐ दिल्ली अब तुम बड़ी मजबूर होती नजर आ रही है, मां बाप से ज्यादा उम्मीदें रखी थी उस मासूम ने तुझसे, पर तुझसे कायरता की बू नजर आ रही है, उसके जिस्म का हर एक टुकड़ा तेरे हैवानियत की शिकार नजर आ रही है, ऐ दिल्ली अब तू बड़ी मजबूर होती नजर आ रही है।