"जिन्दगी" में क्या है उन के बिना, "दोस्ती दिल से"
में सोचा हैं ,उन लम्हों को "जिन्दगी" में क्या है। " दोस्तों"
के बिना उन यादों में मजा है, तड़प है, सादगी हैं ।।
कुछ अपना पन है उन यादों में , ये जुनून नही हैं!! तो क्या ! !
याद आते है वो बचपन के यार. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
वो महकती हुई बरसातो में साथ - साथ चलना,
अधुरा सा है वो लंच बोक्स दोस्तों के बिना ,
खाना साथ -साथ था ,वो खेलो की रंगीन दुनिया
में खो जाना।
गिली डंडा, छुई छुआ वो लगडी टांग. . . . . . . . की टीम में जो साथ थे, वो दोस्त याद आते हैं।।
"फिर कहा खो गया वो पन्ना किताब का"
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