ये क्या कर रहे हो तुम मेरे साथ?
कैसे कैसे रंग बिखेर दिए हैं तुमने?
सुर्ख सूरज को शर्मिंदा करता लाल,
आवारा सा बिखरा हुआ सा जामनी,
सरसों सा बेरोक टोक मचलता पीला,
समंदरों को पानी पिलाता हुआ नीला,
कहीं तितली मचल रही है गुलाबी पर,
कहीं मिट्टी जली जा रही है कत्थई पर,
ये शाम के पर्दों से भी अगला सा गेरुआ,
मल्लाह के कंधों पर खिंचता सा बेरुआ,
पुरवा संग उछल उछल कर आता है पानी,
सावन को तिरछी आंख दिखाता हुआ धानी,
वाह नक्काश ! क्या खूबसूरत नज़ारा बना डाला,
पर तल्खियों के लिए कोई रंग, सहारा ना डाला !
किस ढंग रचूं, क्या भेस उढ़ाऊं?
कांटों की सेज किस ओर बिछाऊं?
काली रातों को ठंडी चांदनी बताऊं?
लाल, नीले, पीले, आंसुओं से सजाऊं?
सब सफेद झूठ गुलाबी नोटों से छुपाऊं?
फिर ये नया सच कहां किसको सुनाऊं?
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