Rishabh Tyagi   (Vyom.निशील)
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Battling the constant tussle to understand myself and people around...
Joined 10 January 2020


Battling the constant tussle to understand myself and people around...
Joined 10 January 2020
7 FEB 2022 AT 9:41

यहां कहां किसे है फुर्सत ख़त टटोलने की,
लिफ़ाफे बदलते रहिए और यूं ही बिकते रहिए !


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18 JAN 2022 AT 10:35

कोई आता है जाने के लिए,
कोई जाता है आने के लिए,
इस आने जाने की मेहनत को हमने दुनिया लिखा है...

कोई जीता है सपनों के लिए,
कोई मरता है अपनो के लिए,
ये जीने मरने का चक्कर तो कर्मों का एक बोसा है...

कोई रहता रूठ जाने को,
कोई झट से मान जाने को,
इस रोज़ाना के झंझट को ख़ुद से हमने दूर रखा है...

कोई हंसता दर्द छुपाने को,
कोई रोता ज़ख्म बताने को,
इस पागलपन को हमने हर दिन, हर इक रात कोसा है...

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31 DEC 2021 AT 1:39

सियासत जब जब भी बदजु़बां हुई है,
शायरी तब तब और जवां हुई है !

शहर में लुट गया था जो कल रात मुसाफ़िर,
उसी बेबस इंसां की दबी ज़ुबां हुई है !

बारूद से धमाके करने का वक्त हो चला,
ये बेशर्मी जो आज खुलेआम हुई है !

दीवारों पे जिसने लहू से इंकलाब लिखा था,
उसकी दिलचस्प मौत का फरमान हुई है !

जाओ बास्तीवालो, घर बार कहीं और बसा लो,
ये रौशनाई तो आग का सामान हुई है !

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21 DEC 2021 AT 0:58

रौशनी बेचता है चांदनी रातों को वो,
दिया अमावस को बेचे तो हमें भी बताओ !

नुमाइश लगा कर बैठा है बीच गांव में,
जो कभी ख़्वाब बेचे तो हमें भी दिखाओ !

खामखां की मेहनत है ज़हर बनाने की,
उसे मीठा मना है ! उसे चाशनी पिलाओ !

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17 DEC 2021 AT 12:39

कतरा कतरा लहू जलाकर, सफ़र तय किया है,
जब ख़्वाब ही पिघल गए तो फिर ज़िंदगी क्या है !

ज़र्द चेहरा, उधड़ी जेब, बिखरे बाल, घिसी आस्तीन,
कुरेदकर सांसों से पूछ लो के क़ैफ़ियत क्या है !

वो उतरते सूरज से आंखें मिलाकर इतराते हैं,
रखो हाथ दिये पर तो पता हो के तपिश क्या है !

हो कोई शाम, है दस्तूर-ए-जश्‍न अगली सुबह का,
फिर ऐसे हौसले से बढ़कर कोई हिम्मत क्या है !


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1 NOV 2021 AT 13:17

वही फीके कपड़े,
पर किरदार बदलते रहे !

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1 NOV 2021 AT 13:11

तेरा, ऐसे यूं जाना...
मुझको, मुझी से दूर कर गया,
बैरी, कैसी ये तेरी मर्ज़ी...
तू संग अपने रंग सब ले गया,
हंसना, मुस्कुराना...
इनसे मिले भी वक्त हो गया,
रहबर, कैसा है मेरा !
रस्तों को ही जो मंज़िल कर गया,
शिकवे, हां कुछ थे मगर,
ब्यौरा उनका कागज़ों में खो गया,
बहुत चाहता था मुझको...
इसलिए आंखों का पानी ले गया,
साथ जीना था उसे मेरे...
तो कतरों में भर कर यादें दे गया,
मेरा ख़्वाब था वो पर,
एक हसीं रात को गर्दिशों में सो गया...

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28 OCT 2021 AT 1:09

ये क्या कर रहे हो तुम मेरे साथ?
कैसे कैसे रंग बिखेर दिए हैं तुमने?
सुर्ख सूरज को शर्मिंदा करता लाल,
आवारा सा बिखरा हुआ सा जामनी,
सरसों सा बेरोक टोक मचलता पीला,
समंदरों को पानी पिलाता हुआ नीला,
कहीं तितली मचल रही है गुलाबी पर,
कहीं मिट्टी जली जा रही है कत्थई पर,
ये शाम के पर्दों से भी अगला सा गेरुआ,
मल्लाह के कंधों पर खिंचता सा बेरुआ,
पुरवा संग उछल उछल कर आता है पानी,
सावन को तिरछी आंख दिखाता हुआ धानी,
वाह नक्काश ! क्या खूबसूरत नज़ारा बना डाला,
पर तल्खियों के लिए कोई रंग, सहारा ना डाला !
किस ढंग रचूं, क्या भेस उढ़ाऊं?
कांटों की सेज किस ओर बिछाऊं?
काली रातों को ठंडी चांदनी बताऊं?
लाल, नीले, पीले, आंसुओं से सजाऊं?
सब सफेद झूठ गुलाबी नोटों से छुपाऊं?
फिर ये नया सच कहां किसको सुनाऊं?

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27 OCT 2021 AT 23:51

यहां रहना है या जाना है, फैसला तुझको करना है,
पर मुझपर छोड़ेगी तो फिर, क्यूं तुझको जाने दूंगा?

ना मैं बदला ना दिल बदला, बस वक्त बदला बदला है
लब पर लब रखकर कह दे फिर, सबसे रुख मैं मोडूंगा !

भूला बिसरा आधा पौना, धुंधला धुंधला पर याद तो है,
तू आंचल ढलका सा कर दे फिर, कैसे सांस ना तोडूंगा?


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29 SEP 2021 AT 13:41

अरे कहां अभी वो शाम हुई,
जो थका हुआ दो पल रुक लूं,
वो ज़िंदा अब तक है फिर कैसे,
मैं ये रात गुज़र कर लूं...

जिस्मों से गिरता लहू कहे,
तू कैसे हिम्मत हार रहा,
उस ज़ख्म का गला दबा दे जो,
कदमों को रोक चिंघाड़ रहा...

कह दो उस गिरते साथी से,
अभी हुक्म नहीं है गिरने का,
जो सर भी कट कर गिर जाए,
तो धड़ का काम है लड़ने का...

हम लौटेंगे ये वादा था,
पर वादे अक्सर टूटे हैं,
तू रंज ना करियो मां मेरी,
हम तारे होकर टूटे हैं...

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