rishabh abhishek   (Rishabh Abhishek)
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Hindi poet
Joined 13 March 2021


Hindi poet
Joined 13 March 2021
11 APR AT 1:35

"𑂥𑂁𑂠 𑂮𑂪𑂰𑂎𑂵𑂁 𑂃𑂥 𑂥𑂰𑂏 𑂥𑂢 𑂏𑂆, 𑂧𑂰𑂀! 𑂃𑂥 𑂅𑂮 𑂣𑂲𑂙𑂰 𑂍𑂵 𑂬𑂥𑂹𑂠𑂷𑂁 𑂧𑂵𑂁 𑂦𑂲 𑂩𑂰𑂏 𑂦𑂩 𑂏𑂆, 𑂧𑂳𑂕𑂵 𑂅𑂮 𑂍𑂰𑂥𑂱𑂪 𑂮𑂧𑂕𑂰 𑂧𑂵𑂩𑂲 𑂔𑂱𑂁𑂠𑂏𑂲 𑂄𑂣𑂍𑂲 𑂄𑂦𑂰𑂩 𑂥𑂢 𑂏𑂆 ।"

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9 APR AT 2:23

"सफर अंधेरे में किया मैंने,मंजिल तक पहुंचते हुए मैंने खुद को भी नही देखा।"

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6 APR AT 3:50

"अभिमन्यु"
यशस्वी भव: हरी से आशीर्वाद मिल गया,
माँ का प्यार पिता से सम्मान मिल गया।
विश्व का सर्वश्रेष्ठ योद्धा होने का खिताब मिल गया। प्राण त्याग के महाभारत का मैं गौरव बन गया।

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31 MAR AT 1:19

"वक्त"
"मुझे वक्त के साथ अपनी,
रिश्तेदारी जोड़ने का,
मौका जरूर मिला था,
मगर जहां मैं खड़ा था,
मैं सारे रिश्तों से खफा था।
वक्त को पता था,
उसके कदम-ए-पाक से चलता जहाँ था।
मैं यूँही पीछे बस खड़ा था,
इंतजार में ढला था।"

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29 MAR AT 3:42

"बंद सलाखें अब बाग बन गई, माँ! अब इस पीड़ा के शब्दों में भी राग भर गई, मुझे इस काबिल समझा मेरी ज़िंदगी आपकी आभार बन गई ।"

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27 MAR AT 1:38

ऐ मौत!तू क्या ? रुह निकालेगा मैं तो उस दिन मरूंगा जिस बखत मुझे मेरी गुस्ताखी मालुमात होगी।

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18 MAR AT 2:25

"काबू"
अपने जज़्बात को काबू में लाना है,
बहती आँखो में बाँध लगाना है।
बंजर हौसलों को फिर से उगाना है,
फूटी क़िस्मत को फिर से सजाना है।
क्योंकि लक्ष्य भेद के,
कुछ लोगों का मुँह चुप कराना है।

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4 MAR AT 1:57

"कफ़न"
काश पुराने उन सपनों को दफ़न मैं कर पाता , अगर अधूरे रहे किस्सों को दहन मैं कर जाता। फिर खुद को मैं ग़म-ए-हयात में ना पाता ,
और चुप-चाप मैं शब्दों का कफ़न ओढ़ के पन्नो पे सो जाता।

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2 MAR AT 21:41

"नहीं लिखूँगा"
इन हालात से नहीं फिसलूँगा,
आज मैं नहीं लिखूँगा।
उन दर्दों से नहीं सेहमूँगा,
आज मैं नहीं लिखूँगा।
शब्दों का कफ़न नहीं पहनूँगा,
आज मैं नहीं लिखूँगा।
आँसूओ को नहीं समेटूँगा,
आज मैं नहीं लिखूँगा।

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24 FEB AT 1:05

"पन्नो में भी गुमान होते है,जब कलम उनमें सवार होते है, शब्दों के भी दाम होते है,लेखक के जब नाम होते है।"

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