"अभिमन्यु" यशस्वी भव: हरी से आशीर्वाद मिल गया, माँ का प्यार पिता से सम्मान मिल गया। विश्व का सर्वश्रेष्ठ योद्धा होने का खिताब मिल गया। प्राण त्याग के महाभारत का मैं गौरव बन गया।
"वक्त" "मुझे वक्त के साथ अपनी, रिश्तेदारी जोड़ने का, मौका जरूर मिला था, मगर जहां मैं खड़ा था, मैं सारे रिश्तों से खफा था। वक्त को पता था, उसके कदम-ए-पाक से चलता जहाँ था। मैं यूँही पीछे बस खड़ा था, इंतजार में ढला था।"
"काबू" अपने जज़्बात को काबू में लाना है, बहती आँखो में बाँध लगाना है। बंजर हौसलों को फिर से उगाना है, फूटी क़िस्मत को फिर से सजाना है। क्योंकि लक्ष्य भेद के, कुछ लोगों का मुँह चुप कराना है।
"कफ़न" काश पुराने उन सपनों को दफ़न मैं कर पाता , अगर अधूरे रहे किस्सों को दहन मैं कर जाता। फिर खुद को मैं ग़म-ए-हयात में ना पाता , और चुप-चाप मैं शब्दों का कफ़न ओढ़ के पन्नो पे सो जाता।
"नहीं लिखूँगा" इन हालात से नहीं फिसलूँगा, आज मैं नहीं लिखूँगा। उन दर्दों से नहीं सेहमूँगा, आज मैं नहीं लिखूँगा। शब्दों का कफ़न नहीं पहनूँगा, आज मैं नहीं लिखूँगा। आँसूओ को नहीं समेटूँगा, आज मैं नहीं लिखूँगा।