Richa Langyan   (II ऋचा लांगयान ll)
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Joined 12 December 2018


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11 JUN 2021 AT 15:02

The Gardening of Soul...
Is it possible?
Is it true?

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5 JUN 2021 AT 23:46

अंतर्मन की कोमल धरा सब जानती है भली भांति
शरीर भले ही हो गया हो शहरी
लेकिन आत्मा अब भी है वही देहाती
नव कोंपलें अंत:करण में अंकुरित नहीं हो पाती
चूंकि मन और मस्तिष्क की आपस में बन नहीं पाती
आधे अधूरे स्वर व्यंजनों से वर्णमाला बन नहीं पाती
और इस तरह शब्दों के उद्गम को गंगोत्री मिल नहीं पाती
कुंठित विचारों से सकारात्मकता पनप नहीं पाती
चूंकि शांति और सुकून मन की तलहटी में बस नहीं पाती

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27 MAY 2021 AT 12:39

आज चांद में भी रोष देखा
वही सूरज वाला जोश देखा
शीतलता के आगोश में था जो अब तक
इस चांद में भी कुछ मंगल देखा

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28 FEB 2021 AT 0:23

My soul is an art
And my body is its museum

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5 JAN 2021 AT 22:56

I have one regret only,
I do not find time to regret

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26 DEC 2020 AT 22:14

नि:स्वार्थ भावों के झरनों से ही सज जाते हैं स्त्री के सब भूमंडल
उसे नहीं चाहिए पुरुष कवच और पौरूषत्व कुंडल

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8 DEC 2020 AT 21:59

स्त्री जो है...
आँख मिचौली खूब खेलती है
कभी रोशनी से
कभी अंधेरे से
कभी रोशनी को छू लेती है
कभी अंधेरों में रोशनी टोह लेती है

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24 NOV 2020 AT 22:52

टूटते तारे को देखकर,
क्या इच्छा मांगेगा वो...?
जिसकी आत्मा ही टूट फूट गयी हो...
पौरुष पतवार से कब तक नाव चला लेगा वो
जब भावों का अभाव ही स्वभाव बन गया हो

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17 NOV 2020 AT 22:02

मैंने तुम्हारी बातें दिल पर नहीं ली थी...
आत्मा पर परत सी चढ़ा ली थी
तभी तो मैं टूटी फूटी नहीं थी
बल्कि और भी सुदृढ़ संगठित हो चुकी थी

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7 NOV 2020 AT 23:33

ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँगी दिलनवाज़ी की
ना तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज़ नजरों से
ना मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों में
ना जाहिर हो तुम्हारी कशमकश का राज़ नजरों से

Some lines
keep wandering in the ocean of soul....

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