खुलके रोना भी चाहे तो रो नहीं सकती,
खुलके हंसना भी चाहे तो हस नहीं सकती,
अपने पीहर में चन्द दिनों से ज्यादा रह नहीं सकती,
शादी के बाद एक बेटी अपने ही मां-बाबा से,
अपने दिल की कोई भी बात कह नहीं सकती।
हर हक खत्म हो जाता है,
जो कभी हक से हमारा हुआ करता था,
इस हक के खत्म होते ही,
कोई भी हक नहीं बचता,
न ही पीहर में और न ही जीवन में,
बचती हैं तो बस जिम्मेदारियां।
सबसे अच्छा बचपन इसीलिए होता है,
क्योंकि हमारा हक हमारे पास होता है,
पापा आज ये लाना, पापा हमें आज ये खाना है,
मां आज घर देर से आयेंगे एक पार्टी में जाना है,
पापा पैसे दो हमें पार्टी के लिए नई ड्रेस लाना है।
पर अब तो कितनी बार सोचना होता है,
कुछ पाने के लिए खुदसे अपने ही मन में,
कितना कुछ बोलना होता है,
कैसे कहें अपनी बात को,
रात भर ये सोचना होता है,
कितना मुश्किल हो जाता है,
अपनी बात को बोलना,
कई बार व्यर्थ जाता है कुछ भी खुदके लिए सोचना।
बस यही है शादी के पहले और शादी के बाद का जीवन।
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