Ravikant Dushe   (Ravi)
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Engineer by Profession Poet by heart
Joined 19 July 2020


Engineer by Profession Poet by heart
Joined 19 July 2020
2 HOURS AGO

ख़त लिखता हूँ तुम्हारी फिक्र मे
तुम्हारी परवाह मे तुम्हारे जिक्र में

लिखता हूँ तुम्हारा नाम कई बार
और क्या लिखता हूँ इस खत मे

क्या कहूँ इसे दीवानगी अपनी
लिखता हूँ सुबह से शाम इस खत मे

होते है जब तुम्हारी आँखों मे आँसू
उड़ेल देता हूँ आँसू इस खत में

जब होती हो तुम खुश
भर देता हूँ कई रँग इस खत में

इसके हर शब्द मे प्यार है
हर अहसास मे मोहब्बत
लिखता हूँ लहू से इश्क इस खत मे

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3 HOURS AGO

जिन्दगी मे इम्तिहान रोज आयेंगे
इन राहो के मुकाम न जाने जब आयेंगे
मैं उस दो राहे पर खड़ा हूँ आकर
जहां से कोई रास्ते नजर न आयेंगे

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6 HOURS AGO

गलती नहीं वो प्यार था किया जो मैंने हरबार था
टूटा मेरा यकीन ही नहीं टूटा मेरा विश्वास था

जिस पर किया क़ुरबान सब कुछ
सोचता हूँ मेरा क्या उस पर अधिकार था

नसीब वालो को मिलता होगा प्यार के बदले प्यार
मेरा नसीब कहाँ इतना नसीबदार था

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8 HOURS AGO

बुझ गई जब जीने की प्यास
किससे करे रहमत की आस

मोहब्बत हर किसी के नसीब मे नहीं
लकीरों होती नहीं सब के हाथ

अकेले ही जीना पड़ती है जिन्दगी
होता नहीं किसी का हाथों मे हाथ

अब किसी की दुआओं का असर नहीं होता
होता भी होगा तो बहुत देर के बाद

चलते रहेंगे जब तक जिस्म मे जान है
होगा ये सफ़र मुक्कमल मेरी जिन्दगी के बाद

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8 HOURS AGO

एक मुकाम के बाद आगे रास्ता नहीं
ये कैसी मोहब्बत है जिसमें तेरा वास्ता नहीं
अब किस से उम्मीद मे रखूं तू बता
लौटकर जाने का हमारा इरादा नहीं

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11 HOURS AGO

जब रिश्तों मे प्यार और विश्वास होता है
बाहों का घेरा भी फ़ूलों का हार होता है

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12 HOURS AGO

सोच मे डूबे हुए अल्फाज़ है
जैसा कल था वैसा ही आज है
कुछ बदला नहीं दरमियाँ हमारे
वही दर्द वही गम वही साज है

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14 HOURS AGO

सुबह सूरज उम्मीदें लेकर आता है
शीतलता ओढ़े हुए निश्चल आता है

सम्भाल नहीं पाता सुबह के अपने रूप को
दर्द इतना होता है कि जल जाता है

फिर दिन भर कोई आयेगा इस उम्मीद मे
रो देता है शाम को और ढल जाता है

रोज रोज एक ही सफ़र एक ही अंजाम
इंसान नहीं है वो जो बदल जाता है

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16 HOURS AGO

गिराकर अपना स्वाभिमान गुलाम हुआ हूँ मैं
तेरे आगे कितना मजबूर हुआ हूँ में

तुझे पाने की चाहत मैं
खुद से बहुत दूर हुआ हूँ मैं

रखा हमेशा खुद को बोना तेरे आगे
फिर भी कहाँ तुझे कुबूल हुआ हूँ मैं

बनाये रखा तेरा सम्मान दुनियाँ मैं
एक फूल की तरह तेरी इबादत मे अर्पण हुआ हूँ मैं

मेरे जैसा मुझ में कुछ रहा ही नहीं
इस तरह तुझ मे घुल मिल गया हूँ मैं

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17 HOURS AGO

कोई समझे दिल के जज्बात यहां उम्मिद न कर
पत्थर को देवता बनाने की कोशिश न कर

जख्मो पर नमक लगाते हे लोग यहां
तू घाव अपने दिल के दिखाया न कर

सैलाब बन जाएंगे ये सूखे हुए दरिया
आंसू अपनी आंखो से गिराया न कर

दर-बदर की ठोकरे नसीब मे मिलती है
तू गैर की महफिल मे जाया न कर

पढे हे उसने भी गीता और कुरान सभी
प्यार के दो लफ्ज़ उन्हे सिखाया न कर

जान की कीमत क्या कुछ भी नही यहां
आंसू मेरे कफन पर बहाया न कर

कोई नामो निशां बाकी न रहे मेरे जाने के बाद
मेरी याद मे कोई दीपक जलाया न कर

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