When I was Outside Mithila
भोरे ऊठिते मिथिला मोन पड़ल '
तिला-संक्रतिक तिलबा मोन पड़ल ,
थर-थर करैत स्नानक देह ,
तैय पर घुड़ क आभा मोन पड़ल ,
चुड्लाई -मुड्लाई आ तिलकुटक संग
खिचड़ी क चार यार आ गुड्डी मोन पड़ल ,
कतय आबि गेलौं ई घुडदौरी मे,
तिथ देख सब पाबैन मोन पड़ल ,
आही बहाने फेर सँ एक बेर बचपन मोन पड़ल।
This Year
आठ बजल छल भोरे–भोर,
आ मां के खिसयेनैय फेर मोन पड़ल,
"तिला–संक्रन्ति में भोरे लोक नहाय छै,
आऽ चुडलैय–मुडलैय खैय छै आऽ तूँ सुतले रह् " से ताना सूनि पड़ल,
थर–थर् करैत स्नानक पुर्वक देह,
ताहि पर "पपियाहा" जल्दी कर केँ उपराग सुनि पड़ल,
एक कठोत चुड़ा – दहि आऽ रंग - रंग के गुड़क मिष्ठान, बरहल डायबिटिज पर चरहैत, देखि पड़ल,
"माय! ई सब खराब करत हमरा" पर
"एक दिन सऽ किछ नैय होय छैय, बनलाइथ ह् बरका बिदेशिया बनलैथ "
कऽ फेर सऽ एकबेर उलहनक् चोट पड़ल,
जरदस्ती खिचडीक् परसन पर परसन आऽ तरुआक आबेस टूटी पड़ल,
किया अइलौ हम "अपन मिथिला" अहि आबेसक दलदलि में,
ऐतेक खाना देख अहिबेर हमरा परदेशे मोन पड़ल,
मुदा, कत भेटत ई घरक' सभगोटेक' घुर् पर जुटान आऽ गप्प लहडी,
तिला–संक्रांति मऽ दुनियाँ भरक सुख आ स्वर्गक आनन्द बुझी पड़ल।
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