Raveena Gusain   (Raveena Gusain)
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कृपया पढ़ने के पश्चात ही लाइक करें 😊☺️😍
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Joined 11 May 2021


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18 MAR 2022 AT 8:08

मैं ही तरसूँ
तेरे लिए हर बार
यह सच नही है
जता देती हैं
मंजिलों के लिए भटकती
इस दुनिया में
कुछ खूबसूरत मंजिलें
खुद अपना पता देती हैं

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2 DEC 2021 AT 9:05

अब वहां कोई आता नहीं
सुना है हवा भी वहां थम गई है
रुकती नहीं थीं कदमों की आहटें जहां
आज स्मृतियां भी वहां जम गई हैं

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24 SEP 2021 AT 14:10

मेरे प्रेम को
किसी पत्ते का आंचल पाना है
उसी में जीवन पाकर
उसी में मिट जाना है

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5 SEP 2021 AT 10:38

बंद पड़े दरवाज़े के पीछे
दर्द कई गहरे हैं
ख़ामोशी में आवाज़ ढूंढते
इनके सामने बहरे हैं

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4 SEP 2021 AT 15:54

कस्तूरी हो चला है मन
विचरत पूर्ण जीवन भर वन
तृष्णा बन गई पीर भारी
उपाय बताए कोई हो उपकारी
छलती हैं लालसाएं
लेके सुगंधित रूप मनोहारी
खोज में इसकी भटकती रहूं
सृष्टि कम पड़े सारी की सारी


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4 SEP 2021 AT 8:52

पर आकाश में अपना
कोई कहीं नहीं
पैरों की बेड़ियों में
फंसी है किस्मत
पर फैलाने का समय
अभी सही नहीं

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3 SEP 2021 AT 8:28

बोझ बन गई है
अपनी अभिलाषा
परिवर्तित प्रतीत होती है
प्रत्येक परिभाषा
कदाचित
सागर दूर नहीं निकट है
परन्तु मन के भीतर का
सूखा भी बड़ा विकट है

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2 SEP 2021 AT 10:04

जिम्मा लिया है जिसने तुम्हें
अपनी प्रेमिका से मिलवाने का
ग़म उसे भी होता है
ढेर से अलग बिक जाने का

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1 SEP 2021 AT 10:56

रात्रि रचित
षड़यंत्र है सारा
जो सागर जल सम
मन है खारा
तिमिर में समाएं
वृक्ष समक्ष हैं
इनकी मेरी विवशता
एक दूजे के समकक्ष है
ये पग बढ़ाएं कैसे
मैं तम में मार्ग विचारू कैसे

-Raveena Gusain





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31 AUG 2021 AT 11:13

जुग्नुओं की टिमटिमाहट को
आकाश चाहिए
बंद तहखाने नहीं
उम्मीदों से भारी मन को
कंधे चाहिए
कोरे सिरहाने नहीं

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