हौंसलो की उड़ान!!! - भाग 1
टेढ़ा मेढ़ा सफर ये, साथ साथ तय कर लेते है जिंदगी,
भूल कर गम सारे , साथ तेरे मुस्कुरा लेते है जिंदगी,
कोरे कागज़ से खाली है हम, रंग इन्द्रधनुष के तुझे मिले है,
कुची तेरी मुझे दे दे, कलाकारी कोई नई दिखा लेते है जिंदगी।
जिंदगी में हौसलों की इसी टेढ़ी मेढ़ी उधेड़बुन को लिए लीजिए एक बार आ गए है हम। जिंदगी का तो काम है अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहना, वो तो चलती रहेगी लेकिन इसकी ऊंच नीच को समझने में कई बार हमारी मंजिले थम सी जाती है। हमारे हौंसले डगमगाने लगते है, कई बार तो रेत की मानिंद हाथों से बिखर कर रह जाते है, हमारे सपनों को पाने की चाह कांच की तरह टूटकर बिखरने लगती है और ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि हम हमारे हौसलों और जिंदगी में तालमेल बिठाना भूल जाते है। हौसलों की धीमी रफ्तार में जिंदगी को रोकने की कोशिश करने लगते है लेकिन कहा है ना तेरे थकने, तेरे रुकने पर तेरी हार नहीं, तू भी इंसान है कोई भगवान नहीं, गिर, उठ, चल फिर भाग क्योंकि जिंदगी बहुत विस्तृत है, इसका कोई सार नहीं।
और इसी पर एक खूबसूरत गीत फिल्म संजू का "कर हर मैदान फतेह" याद आ रहा है। तो आप भी उस गीत को गुनगुनाए, थोड़ी जोश भरिए उस गीत से और मैं फिर लौटूंगी आपके लिए इस लेख का अगला भाग लेकर......— % &
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