Rana Manoj   (Engineer.ek.writer)
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Joined 18 November 2019


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Joined 18 November 2019
20 APR AT 10:34

वक्त है अभी लौटकर आने में
जो दिया है वो गुलाब नहीं दिल है
जरा महका कर रखो उसको अपनी खुशबू से
मेरे दिल को तुम्हारे होने का एहसास तो हो
हकीकत में न सही यूं तो तुम मेरे दिल के पास हो
एक तुम ही हो जो मेरे खास हो

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20 APR AT 0:53

औरो को छोड़ जब खुद की तलाश में लग जाओ
वो राह मोक्ष है
खुल जाए जब द्वार कपाट अंतर्मन के
हो जाए यह एहसास जब क्रोध लोभ मोह माया
मिट्टी की काया सब एक भ्रम है
उठ जाओ जब इन सबसे ऊपर समझ लेना वह रहा मोक्ष है

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19 APR AT 12:12

जेब खाली हो अगर ग़ालिब रिश्ते भी रेत की तरह फिसलते हैं
दौलत शोहरत हो पास अगर रिश्ते भी दामन पर लगे कीचड़ की तरह साथ रहते हैं

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4 AUG 2023 AT 19:12

किस्मत की कहानियां है मैं खुद लिखता और खुद मिटाता हूं
कोई है भक्त सुग्रीव सा
तो मैं रावण कहलाता हु
जिसने छल किया अपनों से मैं वह भक्त नहीं सुग्रीव सा
जिसने छल पाया अपनों से मैं वह भक्त हूं महाकाल का
..
...
कोई है भक्त सुग्रीव सा
तो मैं रावण कहलाता हु

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1 JAN 2023 AT 23:17

तलवार

( एक संवाद युद्ध के उपरांत )

उसने बड़े विनम्र स्वभाव से कहा राणा
ना जाती ना धर्म ना वंश ना नगरी ना राजा ना रंक देखती हूं
अपने स्वामी के बाहुबल का कौशल देखती हूं
मैदान-ए-जंग में बस खून का कतरा
और हूं अगर मयान में तो तुम्हारे मन की विनम्रता देखती हूं

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1 JAN 2023 AT 14:52

मैं कलमो से अब लफ्ज़ चुराने लगा हूं..
मैं कलमो से अब लफ्ज़ चुराने लगा हूं..
बदलते इस जमाने में, मैं अब औरों को सही और
खुद को गलत बताने लगा हूं
..
...
मैं कलमो से अब लफ्ज़ चुराने लगा हूं.
..

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25 DEC 2022 AT 0:28

वो शायर भर गया कोरे कागज को कलम की स्याही से
तुम पढ़ लिख कर भी पढ़ ना सके
वो बिना कुछ कहे सब कुछ कह गया
हर लम्हा करीब रहकर भी तुम उसको समझ ना सके
वक्त मिले तो पढ़कर देखना उसके लफ़्ज़ों को खुद से ज्यादा तुमको जानता था वो गहराई से...
..
वो शायर भर गया कोरे कागज को कलम की स्याही से

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6 NOV 2022 AT 12:28

अजीब है जिंदगी मगर , तो क्या करें
कल तक इन हाथों में तुम्हारा हाथ था जो आज रेत से भरे हैं
की कर रहे हैं इंतजार अभी भी तुम्हारा
कि सरक रही है रेत हाथों से वक्त अभी बाकी बचा नहीं है
कि थाम लो आकर हाथ हमारा, उम्मीद में वही खड़े हैं
मालूम है तुम नहीं आओगे लौटकर
अजीब है अगर अब हम तो क्या करें

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5 NOV 2022 AT 8:54

इक सिक्का एक रुपैया दा मेरे नाम हो गया
कागजा ते लिख दितीआं वै दौलता शौहरता सजना
रिश्तों तो वद कीमती इक कागज द टुकड़ा हो गया...

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15 AUG 2022 AT 17:05

बाहर सब शांत है
मन भीतर शोर मचा है..
जुबां पर खामोशी है अब अक्सर
शायद उधर से कोई आवाज सुनाई दे जाए...
हर एक ढलता सूरज
हर नयी सुबह आप कुछ खास नहीं रहती
जब से छोड़ा साथ उसने
किस्मत भी अपने साथ नहीं रहती....

सांसे तो चल रही है जिंदा भी है
पर अब खुशियां कहीं आस-पास नहीं रहती.....


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