कुछ पल को सही मगर दूर होना चाहता हूं
कहीं बैठकर छांव में डगर देख लेना चाहता हूं
किस-किस को बताऊं हाल दिल का सनम
जो बुझने को आई है उसे बुझा देना चाहता हूं
आग दिल की हर घर तक लगी है
जो जल चुका अब तक उसकी राख समेट लेना चाहता हूं
किस-किस ज़ख़्म पर मरहम लगाऊं सनम
जो दब गया मिट्टी में उसे दबा देना चाहता हूं
और कब तक लङू एक जीत के लिए महज
पूरा हो गया सफर अब हार जाना चाहता हूं
किस-किस का हो लिया अब तक रमन
लेकिन, परंतु, मगर, बस अब तेरा होना चाहता हूं
बहुत हो लिया, बहुत घुट कर जी लिया अब
खुले आसमान में पंख फैला कर उड़ लेना चाहता हूं
संभाल- संभाल कर थक गया रिश्ते, नाते रमन
जो पकड़ा है उसे भी अब छोड़ देना चाहता हूं
झूठी मुस्कान, पहचान से डर रहा हूं सनम
हंस नहीं पा रहा, अब खुल कर रो लेना चाहता हूं
मैं कहीं खो जाना चाहता हूं..।
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