Rakesh Panigrahi   (राकेश पाणिग्राही)
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Joined 7 March 2019


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Joined 7 March 2019
27 MAR AT 23:00

गणित की कक्षा में अव्वल
आई लड़की बनाती है देश का नक़्शा,
बाँट देती है सभी में बराबर- बराबर।

मेरे हिस्से कुछ नहीं आया,
कहने पर कहती है,
तुम मेरे हो, हम तुम एक ही हिस्से में
रह लेंगे साथ साथ !

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23 MAR AT 11:29

मुझे अवसर- ना उम्मिदियों से बचना है,
मुझे आशा- निराशाओं से बचना है,
मुझे अभि कई अभिनव रचना है,
मुझे अपना सही सारथी चुनना है ।

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3 MAR AT 11:04

एक रोज़, एक शाम तुम्हें निगल जाएगी !

तुम वहीं किसी दफ़्तर में किसी मेज़ पर पड़े
ढेर हो जाओगे,
या रहोगे लिखते पढ़ते कोई
सुंदर सी कविता।

तुम्हारा इस्तीफ़ा तुम्हारे किसी ईमेल के
ड्राफ्ट में पड़ा रह जाएगा,
जिसे तुमने पिछले महीने खोलकर
उसकी दुरूस्ती की थी।

तुम्हारे सपने वहीं के वहीं बेदाग़ पड़े रह जाएंगे।
उनपर धूल और मिट्टी की मोटी परत चढ़ जाएगी।

एक रोज़ एक शाम तुम्हें निगल जाएगी !

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3 MAR AT 10:55

मन : मैं अब उसे पुकारूँगा नहीं !!!!!

दिल: तुम अब उसे पुकार सकते भी नहीं 😝

मेरा अहंकार मेरे सच से परे है ।

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28 FEB AT 20:13

एक शाम ऐसा होगा,
हम अपनी सारी सीमाएँ लांघ चुके होंगे,
फिर कुछ ना होगा हमारे हाथ,

मैं उस वक़्त से- मैं उस शाम से डरता हूँ !

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25 FEB AT 23:36

केवल प्रेम को यह छूट है कि,
वह तुम्हें एक रोज़ इस साम्राज्य से
नेस्तनाबूद कर देगा. … ।

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7 FEB AT 21:01

तुम एक रोज़ असला- बारूद ले आना,
मैं तुम पर फूलों से हमला कर दूँगा ।

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3 FEB AT 9:57

मैं अब तेरी याद में
कोई सड़क नहीं बनवाऊँगा,

मैं घर तो बनाऊँगा,
मगर उसमे आँगन नहीं बनवाऊँगा ।

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7 JAN AT 9:56

इल्ज़ाम ये है कि,
मैं अब ख़ुद ही ख़ुद सा नहीं हूँ,
मुझमें कोई बसा है मेरे ही जैसा।

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7 JAN AT 9:21

मैं नहीं जानता में हूँ किस राह का राही,
मुझे एक रोज़ चलते- चलते भटक जाना हैं ।

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