वो बात-बात पे देता है परिंदों का मिसाल,
साफ-साफ यह नहीं कहता मेरा शहर ही छोड़ दो!
तुम्हारी निगाह से कत्ल होते हैं लोग,
एक नजर हमको भी देख लो ,कि तुम बिन जिंदगी अच्छी नहीं लगती।
हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ा आए,
तुझे गले तो लगाना एक बहाना था।
उस शख्स से बस इतना सा ताल्लुक है फ़राज़,
वो परेशां हो तो नींद हमें नहीं आती।
तू भी तो आईने की तरह बेवफा निकला,
जो सामने आया उसी का हो गया।
मैंने मांगी थी उजाले की फकत एक किरण फराज, तुमसे ये किसने कहा कि आग लगा दी जाए।
उसने मुझे छोड़ दिया तो क्या हुआ फराज?
मैंने भी तो छोड़ा था सारा जमाना उसके लिए।
मेरे खुशी के लमहे इस कदर मुक्तसीर है फराज,
गुजर जाते हैं मेरे मुस्कुराने से पहले।
-