तुम समझती हो ना......
"तुमने झूठ कहा था, मैं कभी ठीक नही हो सकती, फिर क्यों कहा कि तुम मुझे पढ़ा दोगी सब ।" भरायी आवाज़ में कीर्ति ने बोला ।
"मैं क्या करती, कैसे कह देती तुमको कि मैं मजबूर हूँ, कुदरत के आगे, हालात के सामने । मजबूरी किस कदर असहाय कर देती है, मैंने भी आज जाना । ये सब जितना तुम्हारे लिए नया था, उतना मेरे लिए भी है। मैं तब ये भी नही जानती थी कि कैसे किसी को सहारा देते है। मैं कोई भी वादा पूरा करने के काबिल ही नही हूँ यार अभी। मुझे वक़्त चाहिए और तुम्हारे पास वक़्त नही है" आत्मग्लानि से भरे हुए मन ने यामिनी से बोला...बाहर कोई आवाज नही आयी ।
दर्द भी दम भर कर एक चुप्पी साध लेता है और बेबाक ही कभी कभी सिसकिया लेता रहता है।
बस मोटे मोटे आँसु उन बेबस आंखों मे आके जम गए, और धुंधली कर दी उस तसवीर को जिसमें वो तीनो बहने हस्ते हुए सेल्फी ले रही थी ।
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