राजन मिश्रा । @mrajanraj  
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जो कांटों से डर जाते हैं,
वो डगर सहम कर चलते हैं।
फूलों की कोमलता में उलझे,
ये मानुष बिखर कर रह जाते है।
जो लहरों से डर जाते है,
किनारों तक सिमट रह जाते है।
जो कूद सका न पानी में,
वो कितना ही तैर लगाएगा।
यह पथ प्रदर्शित कर देता है,
जीवन भर डह डहाएगा।
सुन ए मानुष!
खुद को तू कम आंक नहीं,
जीना भर सिर्फ तेरा काम नहीं।
शूलों से जब तू टकराएगा,
चलने का मजा बढ़ जाएगा।
ये वक्त नहीं है थम जानें का,
ना ही रुक कर सुस्ताने का,
राही बन! तपकर चलते जाने का।

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खुद से बाते करना बुरा नहीं है,
तन्हाइयों का संकेत हो सकता है
पर यह तुम्हारी चेतना भी तो है।
कामयाबी पल भर में नहीं आती,
काफी दूर तन्हा चलना पड़ता है।
अपेक्षाओं से परे व आशाओं के विपरीत,
मजबूत इरादों से कई बार लड़ना होता है।

संसार को जगमगाने वाला सूरज तन्हा,
खूबसूरती के गहरे राज लिए चांद तन्हा,
सबको रोमांचित करने वाला मौसम तन्हा
अतः तन्हाइयों में उलझना नहीं होता।
सफर पथिक की कुशलता से बनता है,
वर्ना तुम दरबारी व काँटे राजा बन जाएंगे।

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अजीब सा पागलपन है प्रेम में।
दुर्लभ परीक्षाएं छोड़ सकता है,
मगर उसे देखने की एक झलक नहीं।
एक नई दुनिया की खोज कर लेता है,
प्रेमिका के मुस्कुराते हुए चेहरे में।
बेजुबान हो जाता है उसके सामने,
बोलने की अपार क्षमता लिए प्रेमी।
और अंततः आत्मसमर्पण कर देता है,
हर वक़्त जंग छेड़ने वाला यह पुरूष।
प्रेमिका विश्व की सबसे सुंदर स्त्री होती है,
यह प्रेम कितना अनोखा है,
प्रेम में पागल लड़कें ही बता सकते है।

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पिता माने साथी,
पिता माने समर्थन,
पिता माने सुख,
पिता माने सम्मान,
पिता माने उम्मीद,
पिता माने छांव,
पिता माने आत्मविश्वास,
पिता माने हिम्मत,
पिता माने गुरु,
पिता माने प्रेम।
पिता की परछाई भी आगे बढ़ने का सहारा देती है,
किस्मत में नहीं जिनके उनसे पूछो कैसे बेसहारा होते है।

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वो बेवफ़ा चेहरे में वफ़ा खोजता रहा,
कितना मासूम था, खुद को बेचता रहा।
खो कर सब कुछ जहां बेचैन सा,
उसकी आँखों में दुनिया देखता रहा।

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शहर की खूबसूरती में इतना खो गया,
गांव की हलचल उसे सुनाई नहीं देती।
वादे किए थे जो उसने साथ चलने के,
वो राह इस जमीं पर दिखाई नहीं देती।

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कुछ याद बनायी जाती है,
कुछ यार बनाए जाते है,
इस दौड़ भाग के जीवन में,
कुछ ख़ास बनाए जाते है।
जिनकी बातों में ठहर सको,
ऐसे दिलदार बनाए जाते है।
बेझिझक जहां कह-सुन सको,
ऐसे हमराह बनाए जाते है।
नव पीढ़ी की नव युवा में,
ये पुराने यार सुनाए जाते है।
यूं मस्त रहो तुम लोगों में,
जो किरदार बनाए जाते है।

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बहक सा गया हूं,
बिछड़ सा गया हूं,
तेरी उम्मीद में बिखर सा गया हूं,
तुझे पाने की चाह में तड़प सा गया हूं,
तुम्हारी कोमलता में पिघल सा गया हूं,
जज्बातों की ढेर में पलट सा गया हूं,
जिम्मेदारियों के बोझ में दब सा गया हूं,
वक़्त की मार में सिमट सा गया हूं,
मानो कठोर चट्टानों से भिड़ सा गया हूं,
बहक सा गया हूं,
बिछड़ सा गया हूं,
तेरी उम्मीद में बिखर सा गया हूं।

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कुछ छूटते सपनें हमें इतना बेचैन कर देते है,
उनकी तलाश में हम बहुत दूर निकल आते है।
सूर्य की किरणें अंधकार में विलीन प्रतीत होती है,
पर इनका पागलपन हमें रुकने नहीं देता है।
बल्कि चट्टानों की तरह और कठोर बना देता है।
ये नन्हें सपने इतने विशालकाय हो जाते है,
कि हमें आगे बढ़ने से थकने नहीं देते है।
जब तुम इन सपनों के शिखर तक पहुँच जाओगे,
और देखोगे कि वहाँ सिर्फ तुम हो।
ठीक उन्हीं ऊंचे पर्वतों की तरह, जिन्हें
धूप-छांव, आंधी-तूफान से कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
फिर कोई फर्क नहीं पड़ेगा,
सब कुछ पा लेने में और सब कुछ खो देने में।

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अभाव से अनुभव का सफ़र कभी खाली नहीं जाता।
मुस्कुराते हुए चलते चले जाना यूं ही नहीं हो जाता।
बड़ी मुश्किलें आया करती है राहों में, मगर!
हौसले बुलंद हो तो मुश्किलों से घबराया नहीं जाता।

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