Raahul Sharma   (बेपरवाह 'श्री')
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Joined 30 December 2019


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18 FEB AT 10:18

एक उदय होने को है,
एक सूरज अस्त हुआ,
मृत्यु को जीता है उनने,
काल भी उनसे पस्त हुआ।

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4 JAN 2023 AT 8:21

ख़ुद को मत बदलो,
ख़ुद में सतत् सुधार करो,
गर छूना चाहते हो आसमां,
तो क्षमताओं का विस्तार करो।
मैं ऐसा हूं, मैं हूं ऐसा,
इन भावों को मुक्त करो,
चाहते हो जैसा होना,
उन कर्मों को युक्त करो।
मान प्रलाप को त्यागो,
परिचय मेहनत करवायेगी,
कोलाहल भंग न कर सके,
एकाग्रता विजय दिलवायेगी।
स्वार्थ, लोभ ओ धोखाधड़ी,
यह असफलता के कारक हैं,
सेवा, लगन ओ धीरज ,
यह सफलता के उद्धारक हैं।

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12 DEC 2022 AT 0:49

क्यूं जज़्बाती होते हो,
खामाखा सुकून खोते हो,
हर शख़्स सिर्फ ख़ुद का है,
यूं ही सबके लिए रोते हो।

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15 NOV 2022 AT 0:08

हंसते मुखोटों के पीछे रोते हुए चेहरे हैं,
निशान नहीं दिखते ज़ख्म बहुत गहरे हैं।
आज़ाद सा लगता है आसमान में लेकिन,
आंखों में उसकी कुछ अनकहे पहरे हैं।
किनारे पे जिसको आई थी लेकर,
उसको डुबोने वाली वही लहरें हैं।।

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13 NOV 2022 AT 10:57

कहीं धुंध छाए,
कहीं आंधी मिले,
कभी गिरे आसमां,
कभी ज़मीं हिले,
हालातों के आघातों पर,
धीरज का मरहम मल देना,
ख़ुद का बनके ख़ुद सहारा,
हर सफ़र पर चल देना।।
पत्थर कांटों चट्टानों पर,
हो दलदल या वीरानो पर,
गिरते संभलते बढ़ते रहना,
दुर्गम पथ पर चढ़ते रहना,
रास्ते ही बन जायेंगे मंजिल,
हर क्षण उम्मीदों को बल देना,
ख़ुद का बनके ख़ुद सहारा,
हर सफ़र पर चल देना।।

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1 NOV 2022 AT 23:45

अब मनाने नहीं आयेगा कोई,
नाराज़गी जो मेरी ख़ुद से है।।

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22 OCT 2022 AT 15:55

ख़ुद को कम आंकके,
दुश्मनी ख़ुद से कर रहा,
मरके ज़िंदा रह सकता,
क्यूं जीते जी मर रहा।।

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26 JUN 2022 AT 9:40

*सच*

असरदार तो बस किरदार है,
ये पर्दे सारे बिखर जायेंगे उसके सामने सब,

ये झूंठ मूठ की बातें और धोखे की ये हंसी,
ख़ालिस हो जायेगा हिसाब लगेगा तब,

जिसको दौलत मान रहे यह तो खोटे सिक्के हैं,
छोड़ देंगे वही सगे कुछ नहीं बचेगा जब,

बाद पछताना रह जायेगा,
फिर फिरेगा चिल्लाते यहां वहां....
कहां है रब,
कहां है रब...
कहां है....
कहां.....।।

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14 JUN 2022 AT 22:51

ख़ुद को भिगोकर सूखी लकड़ियां बचाई है,
एक आग बुझाने को एक आग लगाई है।।

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14 JUN 2022 AT 13:29

साथ और तसल्ली में अंतर बहुत है,
कहने की बात है साथ देता नहीं कोई।

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