शोक कम है उसके खुवाहिशें ज्यादा नहीं करती
बाबा की खाली जेब देखकर, ज़िद्द नहीं करती
सुबह से शाम उलझनों में घिरी रहती है बो भी
सबसे मशवरा करती है कभी मना नहीं करती
गर देखो उसमें कोई एब, तो बेशक बता देना
सादगी से सुनती है, कभी शिकवा नहीं करती
अपने हिस्से के सारे धोखे साथ लिए फिरती है
थोड़ा कंजूस सी है इसलिए बापस नहीं करती
खुशनसीबी है हमसाज़, कि वो यार है तुम्हारी
बरना किसी से भी यूहीं, वो दोस्ती नहीं करती
-hamsaaz
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