किसी को तन्हाइयों का गम मिला, किसी को अपनों का सितम मिला,
किसी को बेवफा सनम मिला, तो किसी को कोई न हमदम मिला
कहीं हसरतें बेचैन रही, कहीं पूरी रैन खुली नैन रही
खुशी मिली ये कौन जाने, पर रंज कहां किसी को यहां कम मिला
पतझड़ के पत्तों का बिखराव, टूटे ख्वाबों का असहनीय फ़ैलाव,
कि इसे समेटने का भी समय हर एक को बहुत कम मिला
हर डाली पर कहा फूल खिले हैं, ना बहने वाली आंसुओं की आंखों में अनगीनत झीलें हैं
और पड़ी है धरती कहीं बंजर से न जाने उसे पानी कितना कम मिला
जो मिला है और रह गया, बस वो है पीड़ित मन और व्यथित जीवन
अब मनेगा सब वसंत सावन इसी में, जो बहार-ए- गुल का कोई मौसम न मिला
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