Pushpam Roy   (Pushpam Roy✍️)
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कुछ भी हो जाए पर आखिरी साँस तक हार नहीं मानो!
Joined 5 June 2020


कुछ भी हो जाए पर आखिरी साँस तक हार नहीं मानो!
Joined 5 June 2020
20 SEP 2022 AT 21:00

दिल की राहों में बरसते बेबाक़ से काटें
जुटना कम यहाँ सिर्फ टूटने के हैं फ़ेरे,
सब हैं समझदार, नासमझ हम अकेले
दिल्लगी के बाज़ार में बस दर्द हैं हमने झेले।

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7 AUG 2022 AT 22:36

बिखड़े अल्फाज़ो को सहेज ले
दिल के बेचैनियों को जो तह दे
मरती जुवां को जो सह दे,
वैसी दोस्त ख़ुदा तू मुझे दे।

हैप्पी फ्रेंडशिप डे🙂

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30 MAY 2022 AT 21:36

क्या ज़रूरत था
ख़ुद से इतना दूर जाने का
खुद को खोकर ही सब भुलाने का...

तंग होगे तुम ही अकेले
बातों से सहारे भी कोई देगा क्या
मतलबी है दुनियाँ में सब
फिर क्या जरूरत था
खुद को गवानें का...

दुनियाँ का रिवाज़ है बदल जाना समय के साथ
बेहाल होगी तेरी जिंदगी,
लोग तो हालातों से भी बेख़बर होंगे
फिर क्या जरूरत था
संसार के इस रवैये को झुठलाने का...।।

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30 JAN 2022 AT 20:22

दे सुकून के दो चार पल,
पर कहाँ पता था हमें कि
चुभ जायेगी इसे
हमारे कहे छोटे से लफ्ज़।— % &

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11 DEC 2021 AT 10:09

जब....!!

दिल की गहराई तक दर्द भर जाए,
की गई सारी कोशिशें नाकाम ही जाए,
जीवन में तकलीफें बेसुमार हो जाए,
सहनशक्ति भी समझो विफल हो जाये।

फिर कैसे...???

कुछ भी अच्छा सोचा जाए,
खुद को ख़र्च होने से बचाया जाए,
दिल में सकारात्मकता जगाया जाए,
औऱ बिखड़ती जिंदगी को संभाला जाए।

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7 NOV 2021 AT 10:09

दिल के बेचैन हालात को,
तुझे देखने के एक आस को।

मेरी बराबर चमकती मुस्कान को,
तेरे लिए धड़कते धड़कन को।

तेरी एक मुलाकात को,
मेरी बेपनाह सी चाहत को।

लफ्ज़ जो मैं कह नहीं पाई,
आँखे जो सब बयाँ करती है।

तुम महसूस तो करो जरा,
तुम महसूस तो करो जरा।

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19 OCT 2021 AT 0:23

दूर दूर तक सन्नाटा सा
आहटें भी ख़ामोश से हैं!
आवाज मानो डरी हुई सी
दर्द तो उफ़ान पे है!
मरहम भी कोई मुझसा नही
शिकायतें तो सभी को है!
पर कोई समझे मुझे
ये भी अब उम्मीद नही है!
रात की खाली पगडंडी पर भी
ख़्वाब भी अब गुमशुदा हुए!
न कोई तमन्ना न चाहत किसी की
मानो जिंदगी भी रात जैसी ही है!

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8 OCT 2021 AT 12:39

नाराज़गी हो तब तो मनाया जा सकता है,
लेक़िन मन भर गया हो तो बात अलग है।



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23 AUG 2021 AT 12:39

अपनों के पास ज़हर की कोई गुंजाइश नही है,
पर लोग पराये हो तो दो चॉइस है।
एक जो बुरे हैं और दिखते भी बुरे हैं,
पर कुछ बुरा होकर भी करते अच्छाई की नुमाइश है।

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25 JUL 2021 AT 0:28

एक बात कभी समझ नहीं आती
क्यों खुशियाँ है मुझसे इतराती।

ख़ुश रहने की सारी कोशिशें
मानों तो नाकाम ही जाती।

क्षण भर के लिए हँसाती
फिर बेवजह ही रुलाती।

इतना इतराती इतना इठलाती
मानो हमसे कोई दुश्मनी है निभाती।

मुस्कुराऊँ उसमें चिढ़ सी है जाती
हमेशा रोने की वजह दे जाती।

ये बात भी अक़्सर परेशां कर जाती
क्यों खुशियाँ है मुझसे इतराती।

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