क्या ज़रूरत था ख़ुद से इतना दूर जाने का खुद को खोकर ही सब भुलाने का...
तंग होगे तुम ही अकेले बातों से सहारे भी कोई देगा क्या मतलबी है दुनियाँ में सब फिर क्या जरूरत था खुद को गवानें का...
दुनियाँ का रिवाज़ है बदल जाना समय के साथ बेहाल होगी तेरी जिंदगी, लोग तो हालातों से भी बेख़बर होंगे फिर क्या जरूरत था संसार के इस रवैये को झुठलाने का...।।
दूर दूर तक सन्नाटा सा आहटें भी ख़ामोश से हैं! आवाज मानो डरी हुई सी दर्द तो उफ़ान पे है! मरहम भी कोई मुझसा नही शिकायतें तो सभी को है! पर कोई समझे मुझे ये भी अब उम्मीद नही है! रात की खाली पगडंडी पर भी ख़्वाब भी अब गुमशुदा हुए! न कोई तमन्ना न चाहत किसी की मानो जिंदगी भी रात जैसी ही है!
अपनों के पास ज़हर की कोई गुंजाइश नही है, पर लोग पराये हो तो दो चॉइस है। एक जो बुरे हैं और दिखते भी बुरे हैं, पर कुछ बुरा होकर भी करते अच्छाई की नुमाइश है।