Pushpa Choudhary  
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Joined 18 January 2021


Joined 18 January 2021
3 JUL 2022 AT 0:00

खुद को देखे भीड़ में तो आम से लगते हैं
चल दे जो मैखाने की ओर तो जाम से लगते हैं,
नजरिये की बात है,
किसी को मशहूर तो किसी को बदनाम से लगते हैं

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2 JUL 2022 AT 23:58

खुद को देखे भीड़ में तो आम से लगते हैं
चल दे जो मैखाने की ओर तो जाम से लगते हैं,
नजरिये की बात है,
किसी को मशहूर तो किसी को बदनाम से लगते हैं

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12 JUN 2022 AT 23:05

आग लगी पड़ी है दुनिया में,
मानवता धू - धू कर, जल रही है,
भूखी नंगी बेचैन है, जनता
दुनिया ऐसे बदल रही है,
सच झूठ सब बिकता है,
रीत ढोंग की चल रही है।

भाईचारे का ढोंग रचा कर,
आपस मे ही लड़ते हैं,
मंदिर मस्ज़िद बाँट लिया,
झूठी बातो पर ये मरते हैं।
@vr_pushpa choudhary



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21 APR 2022 AT 8:36

धर्म आधार है
धर्म ही जीवन है
धर्म से ही हम हैं
और सत्कर्म ही हमारा धर्म है
योग निष्ठा ,ध्यान शिक्षा
और यज्ञ प्रतिष्ठा हमारे कर्म है
भगवत प्राप्ति लक्ष्य है
धर्म संस्थापना उद्देश्य है
~अंकुश चौधरी

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29 MAR 2022 AT 22:37

हम रेत से फिसल रहे थे,
एक राह दिखाने को मुझको,
शायद ये दीपक जल रहे थे,

सर्द रातों मे ऊष्म बन,
वो जुगुनू जगमगा रहे थे,
कहीं भटक न जाऊँ रास्ता,
वजह शायद यही होगी,
तभी,कुछ अपने मेरा दिल जला रहे थे।



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29 MAR 2022 AT 21:56

मैं ही हार गई जब खुद से,
मुझको फिर कौन हराये,
निर्बलता से गिरी जमी पर,
फिर तो मुझको कौन उठाये,
बीच भवर मे नाव डुबाया,
लहरों से फिर कौन बाचाए,

खुद के मन से टूट चुकी हूँ,
आशा मन मे कौन जगाये,
खुद मे खुद को कैद किया जब,
आजादी अब कौन दिलाये

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5 FEB 2022 AT 22:23

Today I m alone,
For me this short night seems to be very long,
I can feel thorny Bird's song,
I can feel the pain,
Of separating couple in the season of rain,
How they cry,
For their loving guy,
How can they heal,
In this loosing deal.....

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5 FEB 2022 AT 21:57

सोचती हूँ कि एक घर ले लू तेरे नाम का,
जिसके दरो- दीवार पर अक्स तेरा हो,
और तुझपर हक सिर्फ मेरा हो,
दिन भर दुनियादारी मे उलझी रहूँ,
पर रात को जो सोउ,
पकड़ उस तकिया को,
जो जज्बातों मे भिंगोया हो।
खिड़की से आती वो दोपहर की,
तपती गर्मी हो,
चाहे सुबह की चादर मे लिपटी नर्मी हो,
तुझमें ही आपने हर धूप छाँव को देखू,
ये अधिकार सिर्फ मेरा हो।

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17 JAN 2022 AT 6:51

आज भी प्रेम उतना ही पवित्र है,
जैसा राधा का, जैसा मीरा का था,
सिया राम, जैसे श्याम ,राधा का था,

प्रेम मे दूर थे, दूरी मे प्रेम था,
तुम मे मैं, मुझमे तुम,
हर कण, हर धुरी मे प्रेम था,

देव शक्ति से थे, शक्ति मे देव थे,
अर्धनारेश्वर, प्रेम मे प्रमाण था।

प्रेम तब भी पवित्र था, प्रेम आज भी पवित्र है,
हर युग मे प्रेम से ही ये सुरज ये चाँद,
ये अंबर का प्रेम था।

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10 DEC 2021 AT 7:58

सोच रही, एक घर ले लू तेरे नाम का,
जिसकी हर दीवार पर तेरी तस्वीर लगी हो,
घर हमारे सपनो सा हो,
जो मिलके देख था हमने -
एक कमरा जिसमे , सुरज की पहली किरण,
हर रोज सुबह जगाता हो,
जिसमे रात की चांदनी, मिठी लोरी गाता हो,
बरामदे मे हो एक झूला,
सुबह की चाय, प्यारी सी नोक- झोंक ,
कल्पनाओ मे ही सही,
जो मन को गुदगुदाता हो,
सोच रही एक घर ले ही लू तेरे नाम का।


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